________________
भगवती सूत्रे
२९८
,
उदयेन चैक्रियशरीरप्रयोगवन्धा भवतीति भावः, एतच्च वायुकायिकपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक मनुष्यानपेक्ष्योक्तम् तेन वायुकायिकादिषु वैकियशरीरवम्वस्य कारणतया लब्धि वक्ष्यति, नैरयिकदेवेषु तु लब्धि विहायैव वीर्यसयोगसद्द्द्रव्यतादीनेव वैक्रियशरीरबन्धस्य कारणतया वक्ष्यतीति बोध्यम्, गौतमः पृच्छति - ' वाउक्काइयएगिंदिय वे उब्वियसरीरपओगबंधेपुच्छा ? ' हे भदन्त ! वायुकायिकै केन्द्रियवैक्रियशरीरयोगवन्धपृच्छा, तथा च वायुकायिकै केन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगवन्धः कस्य कर्मणः उदयेन भवति ? इति प्रश्नः, भगवानाह - ' गोगमा ! वीरियसजोगसन्याए चेत्र जाव लद्धिं च पञ्च वाक्कायए गिंदिय वे उन्नियजावबंधे ' आश्रय से और वैक्रियशरीरप्रयोग नामकर्म के उदय से वैक्रिपशरीरप्रयोगबंध होता है। यहां यावत् शब्द से (प्रमादप्रत्ययात् कर्म च योगं च, भव च) इस पूर्वोक्त पाठ का संग्रह हुआ है । यहाँ पर इतनी विशेपता जाननी चाहिये - वायुकायिक पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक और मनुष्य इनमें वैक्रिय शरीर बन्ध की कारण भूत सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यना आदि लब्धि पर्यन्त सब बातें हैं । तथा नैरयिकों एवं देवों में वैक्रिय शरीरबंध की कारणभूत लब्धि को छोड़कर सबीर्यता, सयोगता, आदि सब बाते हैं । इस विषय को सूत्रकार आगे कहेंगे ।
26 जाव
अ गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं - (वाक्कायएगिंदिघवेउच्चियसरीरपओगबंधे पुच्छा ) हें भदन्त ! वायुकायिक एकेन्द्रिय वैकिय शरीरप्रयोगवंध किस कर्म के उदय से होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - (गोमा ) हे गौतम । ( वीरियसजोगसद्दन्दयाए एवं चेव શરીરપ્રયાગ નામ ક્રમના ઉદયથી વૈક્રિયશરીર પ્રયેાગધ થાય છે. ( यावत् ) ” पहथी ? सूत्रयाउने ग्रहण उभ आये। छे तेनेो महीं ઉલ્લેખ કરીને અર્થ કરવામાં આવે છે) અહી એટલી જ વિશેષતા સમજવાની છે કે વાયુકાયિક, પચેન્દ્રિય તિયાનિક મનુષ્ચામાં વૈક્રિયશરીરખ'ધના કારણુ રૂપ સવીતા, સચેાગતા, સદ્રવ્યતા આદિ લબ્ધિ પન્તનું ખધુ છે તથા નારકે અને દેવેામાં વૈક્રિયશરીરમ ́ધના કારણે રૂપલબ્ધિ સિવાયનુ સીતા, સચેાગતા આદિ બધુ હોય છે. આ વિષયનું કથન સૂત્રકાર આગળ કરશે.
गौतमस्वाभीना अश्न - ( वाउकाइयए गिं दियवे उव्वियसरीरप्पओगबंधे पुच्छा ) હૈ ભદ્દન્ત ! વાયુકાયિક એકેન્દ્રિય વૈક્રિયશરીર પ્રત્યેાગમ ધ કયા કર્મીના હૃદયથી થાય છે ?
महावीर अलुना उत्तर- ( गोयमा 1 ) हे गौतम ( वीरियस जोगसद्दव्वमाए एवं चैव आप लद्धिं पहुचवावकोय एगि दिय वेरव्विय जाव बघे ) सवी