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भगवती लापेन यथा अवगाहनसंस्थाने वैक्रियशरीरभेदस्तथा भणितव्यो यावत् पर्याप्तकसर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिककल्पातीतकवैमानिकदेवपञ्चन्द्रियवै क्रियशरीरप्रयोगवंधश्व, अपर्याप्तकसर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिक-यावत्-प्रयोगवन्धश्च । वैक्रियशरीरप्रयोगवन्धः खलु भदन्त ! कस्य कर्मण उदयेन ? गौतम ! वीर्यसयोगसव्यतया यावत् आयुष्यं वा लब्धि वा प्रतीत्य वैक्रियशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन वैक्रियशरीरप्रयोगवंधः, वायुकायिकैकेन्द्रिय वैक्रियशरीरमयोगवन्धः पृच्छा? गौतम | उक्काइयएगिदियसरीरप्पओगवंधे य) हे भदन्त ! यदि एकेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगवंध है तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रिय शरीरप्रयोगवंध है या अवायुकायिक वायुकायिक भिन्न एकेन्द्रिय शरीरप्रयोगबंध है ? (एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्वियसरीरभेदो तहा भाणियब्वो) हे गौतम ! इस तरह से इस अभिलाप द्वारा जैसा अवगाहनासंस्थान पद में वैक्रिय शरीर का भेद कहा गया है वैसा ही कहना (जाव पजत्तसन्चट्ठसिद्ध अणुत्तरोववाइय कप्पाईय वेमाणिय देवपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पओगधे य अपजत्तसव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरोषवाइय जाव पओगबंधे य) यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपा. तिककल्पातीत वैमानिक देव पंचेन्द्रिय वैक्रिय शरीरप्रयोगबंध और अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक यावत् वैक्रिय शरीरप्रयोगवंध (उब्विय सरीरप्पयोगधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं) हे भदन्त ! वैक्रिय शरीरप्रयोगवंध किस कर्म के उदय से होता है ? (गोयमा) हे एगिं दियसरीरप्पओगबंधे य ?) महन्त ! २ मेन्द्रिय वैठिय श२२ प्रयोग બંધ છે, તે શું વાયુકાયિક એકેન્દ્રિય શરીર પ્રયોગ બંધ છે, કે અવાયુકાયિક (वायुयियी मिन्न) मेन्द्रिय शश२ प्रयोग viध छ ? ( एव एए गं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्वियसरीरभेदो तहा माणियव्वो ) 3 ગૌતમ! આ રીતે આ અભિલાપ દ્વારા જેવા અવગાહન સસ્થાનપદમાં વૈકિય शरीरनामे झi छ, iar ४ा ने (जाव पज्जत्तसम्बदसिद्ध अणुचरोववाइयकप्पाईय वेमाणियदेवपचि दियवे उब्धियसरीरओगब'धे य, अपज्जत्तसव्वदृसिद्ध अणुत्तरोववाइय जाव पओगधे य) पर्यात सर्वार्थ સિદ્ધ અનુત્તરૌપપાતિક કપાતીત વૈમાનિક દેવપંચેન્દ્રિય વૈક્રિય શરીર પ્રયોગ બંધ, અને અપર્યાપ્ત સર્વાર્થસિદ્ધ અનુત્તરૌપપાતિક કપાતીત વિમાનિક દેવપંચે
द्रय वैठिय शरीर प्रयास viध, मी सुधातु ४थन अडर ४२. ( वेउब्धिय सरीरपओगधे ण' भते ! कस्स कम्मरस उदएण?) 3 महन्त ! या ४मना यथी वैठिय शरी२ प्रयोग थाय छ १ (गोयमा !) 3 गौतम !