________________
-
---
-
-
-
-
प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. ८ सू १ प्रत्यनीकस्वरूपनिरूपणम् ७ नीकः । श्रुतं खलु भदन्त ! प्रतीत्य पृच्छा ? गौतम ! त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सूत्र प्रत्यनीकः, अर्थप्रत्यनीका, तदुभयप्रत्यनीकः। भावं खलु भदन्त ! प्रतीत्य पृच्छा ? गौतम ! त्रयः प्रत्पनीकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-ज्ञानप्रत्यनीकः, दर्शनप्रत्यनीक, चारित्रप्रत्यनीकः। टीका-'रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी' राजगृहे नगरे यावत् स्वामी समवस्तः, स्वामिनं वन्दितुं पर्पत् निर्गच्छति, वन्दित्वा धर्मोपदेशं श्रुत्वा प्रतिगता पर्षत् , ततः पुच्छा' हे भदन्त ! श्रुत की अपेक्षा कर के कितने प्रत्यनीक कहे गये हैं ? 'गोयमा तओं, पडिणीया पण्णत्ता' हे गौतम ! शास्त्र की अपेक्षा करके प्रत्यनीक तीन प्रकार के कहे गये हैं। ' तं जहा' जो इस प्रकार से हैं । 'सुत्तपडिणीए, अत्थपडिणीए, तदुभयपडिणीए' श्रुतप्रत्यनीक अर्थप्रत्यनीक और तदुभयप्रत्यनीक 'भावं णं भंते ! पडुच्च पुच्छा' हे भदन्त ! भाव को लेकर प्रत्यनीक कितने प्रकार के कहे गये है १ 'गोयमा' हे गौतम । 'तओ पडिणीया पण्णता 'भाव को लेकर प्रत्यनीक तीन प्रकार के कहे गये हैं । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'नाणपडिणीए, दसणपडिणीए, चरित्तपडिणीए' ज्ञानप्रत्यनीक, दर्शनप्रत्य. नीक और चारित्रप्रत्यनीक ।
दीकार्थ-सप्तम उद्देशक में स्थविरों के प्रति अन्ययूधिकों को प्रत्यनीक रूप से कहा गया है । इसलिये प्रत्यनीक के प्रकरण से आठवें उद्देशक में गुर्वादिकों के जो प्रत्यनीक-द्वेषी हैं उनकी प्ररूपणा सूत्रकार करते हैं (रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी ) राजगृह नगर में यावत्
प्रत्यनी ४ा छ ? “गोयमा! " गौतम ! (तओपांडणीया पण्णता-त जहा--श्रुतनी अपेक्षा नीचे प्रमाणे त्रय ४२ना प्रत्यनी ॥ छ. " सुत्तपडिणीए, अत्थपडिणीए, तदुभयपडिणीए " श्रुत प्रत्यनी मथ प्रत्यन भने तहुमय प्रत्यनी. (भाव ण भंते ! पहुच्च पुच्छा) है महन्त ! मावनी मयेक्षा. प्रत्य क्ष असरना ४ा छ ? " गोयमा ! " हे गीतम! " तओपडिणीयो पण्णत्ता-तंजहा " मापनी मपेक्षा प्रत्यनी त्रय प्रारना ४ा छ. २i -( नाणपडिणीए, दसणपडिणीए, चरित्तपडिणीए) (१) ज्ञान प्रत्यनी, (२) दृशन प्रत्यानी मने (3) यास्त्रि प्रत्यना..
ટીકર્થ–સાતમાં ઉદ્દેષકમાં પરતીથિને સ્થવિરેના પ્રત્યેનીક (કેવી) રૂપે પ્રકટ કરવામાં આવ્યા છે. હવે આ આઠમા ઉદ્દેશકમાં સૂત્રકારે ગુરુ આદિના भत्यनी: (पीविधी)नी १३५, ४१ “ रायगिहे नयरे जाप पर क्यासी"