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प्रमेयचन्द्रिका टी० ० ८ ० ९ सू० ३ प्रयोगवन्धनिरूपणम् ३२७ 'गोयमा ! पीरियसजोगसव्वयाए पमायजावआउयं पड्डुच्च · पंचिदियओरालियसरीरपभोगनामाएं करमस्स उदएणं' हे गौतम'! वीर्यसयोगसद्रव्य तया सवीर्यतया, सयोगतया, सद्रव्यतया, प्रमादप्रत्ययात यावत्-कर्म च, योगश्च, भावञ्च, आयुष्कं च प्रतीत्य आश्रित्य तेपामपेक्षया पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगनाम्नः कर्मणः उदयेन पञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोवन्धो भवति, एवं-'तिरिक्खपबिंदियओरालियसरीरप्पभोगवधे एवं चैव' तिर्यग्योनिकपश्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगन्धः एवञ्चैत्र-उक्तरीत्यैव, वीर्यसयोगादिभवायुष्कान्तापेक्षया तिर्यग्योनिकपञ्चेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगनामकर्मण उदयेन भवति । गौतमः पृच्छति-' मणुस्स पंचिंदियओरालियसरीरप्पभोगबधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? ? हे भदन्त! है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा) हे गौतम ! (वीरियसजोगसव्व याए पमाय जाच आउयं पडच्च पंचिंदियओरालियसरीरप्पओगनाम कम्मस्स उदएणं ) पंचेन्द्रिय जीव के सवीर्यता, सयोगता, सद्रव्यता से तथा प्रमाद कारण से, यावत्-कर्म, योग, भाव और आयुष्क इनको आश्रित करके अर्थात् इनकी अपेक्षा से और पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर प्रयोग नामकर्म के उदय से पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर प्रयोग का घंध होता है। इसी तरह से (तिरिक्खपंचिदियओरालिय सरीरप्पओगवंधे एवं चेव) इसी तरह से सवीर्यना, सयोगता आदि भवायुष्कान्त की अपेक्षा से एक तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर सम्पादक नामकर्म के उदय से तिर्यग्योनिक पंचेन्द्रिय औदारिक शरीर प्रयोग घंध होता है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(मणुस्सपचिदिय ओरालियसरीरप्पभोगय धे णं भंते ! कस्स कमानस्स उदएणं हे भदन्त ! मनुष्य
भावा२ प्रभुने। उत्तर --" गोयमा !" है गौतम ! (वीरियसजोग सहव्ययाए पपाय जाव आउयं पडुच्च पचि दिय' ओरालिय सरीरप्पओग नाम कम्मस्व उदएण" ५'यन्द्रिय वन सवीयता, सयोगता भने सद्र०यताथी તથા પ્રમાદના કારણથી કર્મ, યોગ, ભાવ અને આયુષ્કની અપેક્ષાએ અને પંચેન્દ્રિય દારિક, શરીર પ્રયોગ. નામ કર્મના, ઉદયથી પંચેન્દ્રિય ઔદારિક शरीर प्रयास ५ थाय छे । मेरा प्रमाणे “तिरिक्खप चि दियओरालियसरीरप्पओगव धे एवं चेव" समीयता, समायुता, सद्र०यताप्रभाहना કારણથી કર્મ, ગ, ભાવ અને આયુષ્કની અપેક્ષાએ અને તિર્યાનિક પચેન્દ્રિય દારિક શરીર સમ્પાદક નામ કર્મના ઉદયથી તિયનિક પશે ન્દ્રિય ઐદારિક શરીર પ્રયોગ બંધ થાય છે. ,