________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका शे ८ उ ८ सूं १ प्रत्यनीकस्यप निरूपणम्
पण्णत्ता, तं जहा - सुत्तपडिणीए, अत्थपडिणीए, तदुभयपडिणीए, भावं णं भंते ! पडुच्च पुच्छा ? गोयमा ! तओ पडिणीया पण्णत्ता, तं जहा -- नाणपडिणीए, दंसणपडिणीए, रित्तपडिणीए ॥ सू० १ ॥
छाया - राजगृहे नगरे यावत् एवम् अत्रादीत् - गुरून् खलु भदन्त ! प्रतीत्य कति प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम । त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथागुर्वादिक प्रत्यनीक- द्वेषी वक्तव्यता
' रायगिहे नघरे जाव एवं वयासी ' इत्यादि । सूत्रार्थ - ( रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी) राजगृह नगर में गौतम ने यावत् इस प्रकार से कहा - पूछा - ( गुरूणं भंते! पडुच्च कइ पडीया पण्णत्ता ) हे भदन्त । गुरुजनों को आश्रित करके कितने प्रत्य नीक कहे गये हैं ? (गोयसा ) हे गौतम । ( तओ पडिणीया पण्णत्ता) तीन प्रत्यनोक कहे गये है ( त जहा ) जो इस प्रकार से हैं ( आयरिय पडिणी, उवज्झायपडिणीए, थेरपडिणीए ) आचार्य प्रत्यनीक उपाध्याप्रत्यनीक और स्थविरप्रत्यनीक । (गणं भंते । पहुच कह पडिणीया पण्णत्ता) हे भदन्त | गति की अपेक्षा करके कितने प्रत्यनीक कहे गये हैं ? ( गोधमा ) हे गौतम! (तओ पडिणीया पण्णत्ता ) तीन प्रत्यनीक कहे
<i
गुर्वादि अत्यनी (द्वेषी) नी वक्तव्यता -
रायगिहे नयरे जाव एवं वयासी " त्याहि
सूत्रार्थ - ( रायगिद्दे, नयरे जाव एवं वयासी ) राजगृह नगरमा भडावीर प्रभु यधार्या. ( यावत् ) गौतम स्वामी तेमने आ प्रमाणे पूछयुं - ( गुरूण भंते ! पडुच्च कइ पडिणीया पण्णत्ता ? ) हे सहन्त ! गुरु४नोनी अपेक्षाओ डेंटला अत्यनी (द्वेषी विरोधी ) ४ह्या छे ?
( गोयमा ! ) डे गीतभ ! ( तओ पडिणीया पण्णत्ता ) गुरुनानी ये क्षा त्राशु प्रत्यनी ह्यां छे. ( तजहा ) ते प्रत्यनी मा प्रमाणे छे(अयरिय पडिणी, उवज्झाय, पढिणीए, थेरपडिणीए ) ( 1 ) माथार्य प्रत्यनी, (२) उपाध्याय प्रत्यनीक भने (3) स्थविर प्रत्यनी5.
( गइ ण भंते ! पहुच्च कइ पडिणीया पण्णत्ता ? ) डे लक्षन्त ! जतिनी અપેક્ષાએ કેટલા પ્રત્યેનીક કહ્યા છે?
४८
गोयमा ! ” डे गौतम ! ( तओ पडिणीया पण्णत्ता ) गतिनी अपेक्षा मे