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- भगपतीने गोमयराशीनां वा, अवकरराशीनां कचवरपुञ्जानां, उच्चत्वेन ऊ चयनेन वन्धः । समुत्पद्यते, स उच्चयवन्धः 'जहण्णेणं अंतोमुहुर्त, उक्कोसेणं संखेनं कालं, सैतं उच्चयवधे' जघन्येन अन्तर्मुहूतम् , उत्कर्पण संख्येय कालं तिष्ठति, स एप उच्चयवन्धः प्रजातः । गौतमः पृच्छति-से किं ते समुच्चययंत्रे ? ' हे भदन्त ! अर्थ कः कतिविधः स समुच्चयवन्धः प्रजासः? भगवानाह-समुच्चयवंधे जंणं अगडतडाग-नई-दह-वावी-पुक्खरिणी-दीहियाणं, गुंजालियाणं, सराणं, सरपंतियाणं, . सरसरपंतियाणं, विलपंतियाण' हे गौतम ! समुच्चयबन्धो यत् खलु अगड (अवट कूप) तडाग-नदी हद-वापी-पुष्करिणी-दीर्घिकाणां गुजालिकानाम् गोलाकारपुष्करिणी-' है, तुणों का जो ऊंचा ढेर लगा दिया जाता है, भुसा का जो ऊंचा ढेर लगा दिया जाता है, गोमय (गोबर ) का जो ऊँचा ढेर लगा दिया जाता है, कूडा-कचड़ा का जो ऊचा ढेर लगा दिया जाता है, इस ढेर . में जो उन पदार्थों का आपस में संबंधरूप बंध है. वह उच्चय बंध है! यह उच्चयबंध जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट से संख्यातं . काल तक रहता है-इसके बाद वह नष्ट हो जाता है।
अव गौतमस्वामी प्रभु से समुच्चयबंध के विषय में पूछते हैं-(से. किं तं समुच्चयवंधे ) हे भदन्त लखुच्चयबंध कितने प्रकार का होता है , अर्थात् समुच्चयबंध का क्या स्वरूप है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं(समुच्चयबंधे जणं अंगडतडाग नदी दह वावी, पुस्खरिणी, दीहि-, याणं गुंजालियाणं, सराणं, सरपंतियाण, चिलपतियाणं) हे गौतस! अगडकूप, तडाग-तालाब, नदी, द्रह-हदे, वापी, पुष्करिणी, दीपिका ને જે ઊંચે ઢગલે કરવામાં આવે છે, ગોબર (છાણું) ને જે ઊંચે ઢગલે કરવામાં આવે છે, કચરા પુજાને જે ઊંચે ઢગલે કરવામાં આવે છે, તે ઢગલામાં રહેલા તે પદાર્થોને પરસ્પરના સંબંધ રૂપ જે બંધ છે, તેને ઉય બંધ કહે છે. આ ઉચ્ચય બંધ ઓછામાં ઓછા એક અંતમુહૂર્ત સુધી અને વધારેમાં વધારે સંખ્યાતકાળ સુધી રહે છે, ત્યારબાદ તે નષ્ટ થઈ જાય છેહવે ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને સમુચ્ચય બ ધ વિષે એ પ્રશ્ન પૂછે છે કે
. (से कि त 'समुच्चय बधे ?) 8 महन्त ! सभुस्यय बुं बु २१३५ छ? -
- . महावीर प्रसुनो उत्तर-( समुच्चय बधे जण अगड , तडाग-नदी-दह वावी, पुखरिणी, दीहियाण, गुंजालियाण, 'सराणे, सरपतियाणं, सरसरपति याण, विलपतियाणं) गौतम ! Val, तणाव, नदी, द्रड ( -3), पाप,