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___ भगवती १७० प्रज्ञप्ताः, द्वादश पुनर्वेदयति, यस्मिन् समये शीतपरीपदं वेदयति, नो तस्मिन् समये उष्णपरीपहं वेदयति, यस्मिन् समये उष्णपरीपहं वेदयति नो तस्मिन् समये शीतपरीपहं वेदयति, यस्मिन् समयेचर्यापरीपहं वेदयति, नो तस्मिन् समये शय्या परीपहं वेदयति, यस्मिन् समये शय्यापरीपहं वेदयति, नो तस्मिन् समये चर्यापरीपहं वेदयति । एकविधवन्धस्य खलु भदन्त ! वीतरागछमस्थस्य कति परीपहाः छद्मस्थ जीव के कितने परीषह होते हैं ? (गोयमा ) हे गौतम! छह प्रकार के कर्मों का बध करने वाले सरागछद्मस्थ जीव के (चोइस परीसहा पण्णता ) चौदह परीषह होते हैं। (वारस पुणवेपट) परन्तु वह एक साथ बारह १२ परीपहों का वेदन करता है। (जं समयं सीयपरीमहं वेएइ णो तं समयं उसिणपरीसहं वेएइ, जे समयं उसिणपरीसहं वेएइ, नो तं समयं सीयपरीसहं वेएइ, जं समर्थ चरिया परीसहं वेएइ, जो तं समयं सेनापरीसहं देएइ, जे लमयं सज्जापरीसहं वेएइ, णो तं समयं चरियापरीसहं वेएइ ) क्यों कि जिस समय वह शीतपरीषह का वेदन करता है उस समय वह उष्णपरीपद का वेदन नहीं करता है । तथा जिस समय वह उष्णपरीषह का वेदन करता है उस समय वह शीतपरीषह का वेदन नहीं करता है । जिस समय यह चर्यापरीषह का वेदन करता है-उस समय वह शय्यापरीषह का वेदन नहीं करता है
और जिस समय वह शय्यापरीषह का वेदन करता है उस समय वह चर्यापरीषह का वेदन नहीं करता है । (एकविहधगस्त णं भंते । છ પ્રકારના કર્મોને બંધ કરનાર સરાગ છદ્મસ્થ જીવને કેટલા પરીષહ સહન ४२१। ५ छ १ (गोयमा !) हे गौतम । ७ ४१२॥ भनी ५५ ४२नार स। छद्म२५ वने (चोद्दसपरीसही पण्णता ) यो परीषी सहन ४२१॥ ५ छे. “पारस पुण वेएइ " ५६ मे साथे मा२ ५५डातुं वन ४२ छ. “ समय सीयपरीसह वेश्इ, णो त समय उसिणपरीसह वेएइ, ज' समय उसिणपरीसह वेएइ, नो त समय सीयरीसह वेएइ, जं समयं चरियापरीसहं वेएइ, णो त समय सेज्जापरीसह वेएइ, ज समय सेज्जापरीसह वेएइ, णो त समय चरियापरीसह वेएइ ) ४२५४ २ समये ते शीत ५२વહન વેદન કરે છે, તે સમયે તે ઉષ્ણપરીષહનું વેદન કરતો નથી. તથા જે સમયે તે ઉષ્ણપરીવહનું વેદન કરે છે, તે સમયે તે શીતપરીષહનું વેદન કરતા નથી. તથા જે સમયે તે ચર્ચાપરીષહનું વેદન કરે છે, તે સમયે તે શય્યાપરીષહનું વેદન કરતું નથી. તથા જે સમયે તે શવ્યાપરીષહનું વેદન કરે છે, તે समये ते अर्यापरीषतुं वहन ४२ते नथी. “ एकविह बंधगस्स णं भंते ! वीय.