________________
अमेयचन्द्रिका टोका श० ८ उ० ८ सू० ५ कर्मप्रकृति-परीषडवर्णनम् ९७ प्रज्ञापरीषहः ज्ञानपरीपदश्च वेदनीये खलु भदन्त ! कर्मणि कतिपरीपहाः समवतरन्ति ? गौतम ! एकादश परीषहाः समवतरन्ति, तद्यथा-पश्चैव आनुपूर्व्या, "चर्या, शय्या, वधश्च, रोगश्च, तृणस्पर्शः, जल्लमेव च । एकादश वेदनीये ॥५८।। दर्शनमोहनीये" खल भदन्त ! कर्मणि कति परीपहाः समवतरन्ति ? गौतम ! एको दर्शनपरीपहः समवतरति, चारित्रनोहनीये खलु भदन्त ! कर्मणि कतिपरीपहाः समवतरन्ति ? 'दो परीसहा समोरति' ज्ञानावरणीय कर्ममें दो परीषहों का समावेश होता है । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं 'पन्नापरिसहे, नाणपरीसहेय' प्रज्ञापरीषह और ज्ञानपरीषह। 'वेयणिज्जेणं भंते ! कम्मे कइ परीसहा समोयरंति' हे भदन्ता वेदनीय कर्म में कितने परीषहों का समावेश होता है ? 'गोयमा' हे गौतम! 'एक्कारस परीसहा समोयरंति' वेदवेदनीय कर्म में ग्यारह ११ परीपहों का समावेश होता है । ' तं जहा' जो इस प्रकार से हैं 'एंचेच आणुपुञ्ची, चरिया सेज्जावहे य, रोगे य तणफासजल्लमेव य, एकारस वेयणिज्जमि ५८' क्रमशः पहिले के पांच परीषह क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, और दंशसशक-चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल ये ग्यारह ११ परीषहोंका वेदनीय कर्म में समावेश होता है। दंसणमोहणिज्जेणं भंते! कम्मे कइ परीसहा समोयर ति' हे भदंत दर्शनमोहनीय कर्म में कितने परीषहों का समावेश होता है ? 'गोयमा' गौतम ! 'एगे दंसण परीसहे समोयरइ' दर्शन मोहनीय कर्म में एक दर्शनपरीसहा समोयरति ) ॐ गौतम । ज्ञानावरणीय प्रभा परीषडाना सभादेश थाय छ ( त जहा) मनां नाम मा प्रमाणे छ (पन्नापरीसहे, प्रणपरीसहे य) प्रजापरीष मने शानपरीष ( वेयणिज्जेणं भते कम्मे का परीसहा समोयर ति ?) B RE-1 | वहनीय ४iean परीपलानी समावेश याय छ ? (गोयमा !) गौतम ! (एकारस परीसहा समोयरति-त जहा) २६ नीय भभी नयना ११ पशषडानी समावेश याय छ-(प'चेव आणुपुव्वी, परिया, सेज्जा, बहेय, रोगे य, तणफासजल्लमेव य, एकारस वेयणिज्जमि ४८) अनुमे पडेसा पांय परीष-(१) क्षुधा, (२) तृषा, (3) शीत (४) ! भने (५) शमश, (6) यर्या, (७) शय्या, (८) वध, () शेण, (१०) તૃણસ્પર્શ અને (૧૧) મલ આ અગિયાર પરીષહનો વેદનીય કર્મમાં સમાન देश याय छे. (६सणमोहणिज्जेणं भंते ! कम्मे कइ परीसहा समोयरति १) હે ભદન્ત ! દર્શનમોહનીય કર્મમાં કેટલા પરીષહનો સમાવેશ થાય છે? (गोयमा ! ) गौतम ! (एगे दसणपरीसहे समोयरइ) ४श नमानाय भी