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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.५ सु.२ स्थूलप्राणातिपातादिमत्याख्याननि० ६१३ काले प्राणातिपात' प्रत्याचक्षाणः प्राणातिपातस्य प्रत्याख्यानं कुर्वाणः किं करोति ? भगवानाह- 'गोयमा ! तीयं पडिक्कमइ, पडुप्पन्न संवरेइ, अणागयं पञ्चक्खाइ' हे गौतम ! अतीत भूतकालकृत प्राणातिपात प्रतिकामति प्रतिक्रमेण निन्दाद्वारा ततो निवर्तते, अथच प्रत्युत्पन्न वर्तमानकालिकं जायमानं प्राणातिपात संवृणोति, अवरुणद्धि न करोतीत्यर्थः, एवम् अनागत भविष्यकालिकं जनिष्यमाणं प्राणातिपातं प्रत्याख्याति 'न करिष्यामि' इत्यादि निश्चयं करोति, गौतमः पृच्छति- 'तीयं पडिक्कममाणे किं तिविह तिविहेणं पडिक्कमइ' १ हे भदन्त ! स श्रावकः अतीत प्राणातिपात प्रतिक्रामन् निन्दासम्यक्त्वपतिपत्ति के बाद प्राणातिपात का प्रत्याख्यान होता है-तब वह उस समय क्या करता है ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं'गोयना' हे गौतम । 'तीयं पडिक्कमइ, पडप्पन्न संवरेइ, अणागयं पच्च. क्वाई' जब वह प्राणातिपात का प्रत्याख्यान करता है-तब वह अपने द्वारा भूतकाल में हो गये प्राणातिपात का प्रतिक्रमण करता है-अर्थात् भूतकाल में उसके द्वारा जो भी माणातिपात हो गया होता है उसकी वह निन्दा करता है-इस निन्दा द्वारा वह उससे दूर होता है। तथा वर्तमान में जो उससे माणातिपात हो रहा है उसे वह करता नहीं है-रोकदेना है। तथा भविष्यकाल में जो प्राणातिपात इसके द्वारा होने वाला होता है उसका वह त्याग कर देता है-अर्थात् झै "प्राणातिपात नहीं करूंगा" ऐसा यह निश्चय कर लेता है। ____ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'तोयं पडिकममाणे किं तिविहं तिविहेणं पडिक्कमइ' १ हे भदन्त ! श्रमणोपासक-श्रावक जो તેનામાં દેશવિરતિના પરિણામ હતાં નથી તેથી સમ્યકત્વથી પ્રાપ્તિ થયા પછી જ્યારે તે પ્રાણાતિપાતના પ્રત્યાખ્યાન કરે છે, ત્યારે તે શું કરે છે? मडापार प्रभुन। उत्तर :- ‘गोयमा !' गौतम 'तीयं पडिक्कमइ, पडुप्पन्न संवरेइ, अणागयं पञ्चक्खाइ' ज्यारे ते प्रातिपातना प्रत्यज्यान ४२ छ, ત્યારે ભૂતકાળમાં પિતાના દ્વારા થયેલાં પ્રાણાતિપાતનુ પ્રતિક્રમણ કરે છે–એટલે કે પિતાના દ્વારા ભૂતકાળમાં કરાયેલા પ્રાણુતિપાતની તે નિદા કરે છે–આ નિંદા દ્વારા તે તેનાથી મુકત થાય છે. તથા વર્તમાન કાળમાં તેના વડે જે પ્રાણાતિપાત થઈ રહ્યા હોય છે તેને તે અટકાવી દે છે તથા ભવિષ્યકાળમાં તેના દ્વારા જે પ્રાણાતિપાત થવાના હોય છે તેને તે ત્યાગ કરે છે. એટલે કે “હુ પ્રાણાતિપાત નહીં કરૂં” એ તે નિશ્ચય કરે છે गौतम स्वामीनी प्रश्न - 'तीयं पडिक्कममाणे किं तिविहं तिविहेणं पडिक्कमई १?' महन्त ! भूतमा याताना ६२। ४२ये प्रयातियातन प्रतिम
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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