________________
-
प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.८.उ.५ म.१ परिग्रहादिक्रियानिरूपणम् ममता परिणामः सः अपरिज्ञातो भवति. अप्रत्याख्यातो भवति, अनुमते२प्रत्याख्यातत्वात् ममत्वभावस्य चानुमतिरूपत्वात 'से तेण?ण गायमा ! एवं वुच्चर--सय भंड , अणुगवेसइ, णो परायगं भड अणुगोपई' तत् तेनार्थन हे गौतम ! एमुक्तक्रमेणोच्यते यत् स्वकीय भाण्डम् अनुगवेषयति, नो परकीय भाण्डम् अनुगवेषयति । गीतमः पृच्छति-समणोवासगस्स णं भंते ! सामाइकडरस समणोवम्सए अच्छमाणस्स केइ जायं 'चरेजा ?' हे भदन्त ! गवेपणा करता है एसा कहा है । यही वात 'लमत्तभावे पुण से अपरिणाए भवः' इस स्त्र द्वारा समझाई गई है । अर्थात् सामायिक करनेके निमित्त उतारे गये बच्चादिकों की अथवा घरमें रखे हुए पदार्थों की की जिन्हे चोरने चुरो लिगा है उसने सामायिक करते समय उनमें अनुमति रूप ममताभाद का प्रत्याख्याल नहीं किया था इस कारण वह सोमायिक के बाद अपने गण्डकी गवेषणा करता है। दूसरे के भाण्डकी गवेषणा नहीं करना । अर्थात् जिन साण्डोंकी बह गवेषणा कर रहा है-वे भाण्ड उसीके हैं. अनुमति का त्याग नहीं करने से वे उसके स्वामित्व से बहिर्भूत नहीं हए हैं। 'से तेणणं गोयमा ! एवं चह, मयं भंडं अणुगवेसड, णो परायचं अंडं अणु गवेसई' इसी तरह से इल सूत्र पाठ द्वारा उक्त विषय का ही सूत्रकार ने उपसंहार किया है । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐमा पूछते हैं । 'समणोवासगरम णं भते ! सामाइयकडल समणोवरस्सए अच्छताण
स केइ जायचरेजा' हे भदन्त ! जिसने सामायिक धारण की हैशाध ४२ छ, म घुछ मे. पात 'ममत्तभावे पुण से अपरिणाए भवइ' આ સૂત્ર દ્વારા સમજાવી છે. કહેવાનુ તાત્પર્ય એ છે કે સામાયિક કરતી વખતે ઉતારેલાં વસ્ત્રાદિ અથવા ઘરમાં રાખેલા પદાર્થો કે જેમને કઈ માણસ ચરી ગયેલ હોય છે, તેમા અનુમતિ રૂપ મમતાભાવના પ્રત્યાખ્યાન તે શ્રાવકે સામાયિક ધારણ કરતી વખતે કર્યા ન હતા તેથી તે શ્રાવક સામાયિક પૂરી થયા પછી પોતાના ભાડાની શોધ કરે છે–અન્યનાં શેાધ કરતો નથી કારણકે અનુમતિરૂપ મમત્વને ત્યાગ નહીં કરવાથી તે ભાડ ઉપરને તેને અધિકાર ચાલે નથી તેથી જે ભાડાની તે ગવેષણ કરે છે, તે તેના જ છે એમ डेवामा । माया रहतो नथी., से: तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ, सयं भड अणुगवेसइ, णो परायगं भंडं अणुगवेसड' मा शत मा सूत्रपा: वारा सूत्रारे ઉપર્યુકત વિષયને જ ઉપસહાર કર્યો છે.
वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न ४२४- 'समणोवासगस्सणं ___ मंते ! सामाईयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केड जायं चहेज्जा'