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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.३ सू. ३ रत्नप्रभादिपृथिवीनिरूपणम् ५६१
टीका-कूर्मादिजीवाधिकारात् तदुत्पत्तिक्षेत्रस्य रत्नप्रभादेश्वरमाचरमविभाग वक्तव्यतामाह-कइ णं भंते' इत्यादि । 'कइ णं भते ! पुढवीओ, पण्णत्ताओ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कति कियत्यः खलु पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह -'गोयमा! अट्ठ पुढवीओ पणनाओ' हे गौतम ! अष्ट पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः 'तंजहा -रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा, ईसीपभारा' तद्यथा १ र नप्रभा, यावत्-२ शर्करा प्रभा, ३ वालुकाप्रभा ४ पङ्कप्रभा ५ धूमप्रभा, ६ तमःप्रभा ७ तमस्तमःप्रभा अधःसप्तमी, ८ ईपत्माग्भारा-मिद्धशिला । गौतम पृच्छति- 'इमाणं भंते ! चरम भी है और अचरिमा भी है। (सेवं भंते ! सेवं भते ! त्ति) हे भगवन् ! जैसा आपने कहा है वह सब सर्वथा सत्य ही है-हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया लब सर्वथा सत्य ही है। इस प्रकार कह कर, गौतम यावत् अपने स्थानपर विराजमान हो गये।
टीकार्थ -क्रूर्मादि जीवोंके अधिकार से इनकी उत्पत्ति के क्षेत्र रूप रत्नप्रभा आदि के चरम अचरम आदि विभाग की चकव्यता को यहां सूत्रकार कहते हैं-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! पृथिवियां कितनी कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम ! 'अह पुढवीओ पण्णत्ताओ' पृथिन्यिां आठ कही गई हैं ' 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-' रयणप्पभा जाव अहे सत्तमा, १ रत्नप्रभा, २ शक रामभा, ३ वालुकाप्रभा, ४ पङ्कप्रभा. ५ धूमप्रभा, ६ तमःप्रया, और सातवीं तमस्तमाप्रभा तथा आठवीं 'ईसीपन्भारा' ईषत्माग भारा-सिद्धशिला । यावत् - मानिदेव यम पाय छ भने अन्यरम छ 'सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति' હે ભગવાન્ ! આપે જે કહ્યું છે તે સર્વચા સત્ય છે હે ભગવાન્ તમારા દ્વારા કરાએલ સઘળ કથન સત્ય જ છે એ પ્રમાણે કહીને ગૌતમ સ્વામી યાત-પિતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થઈ ગયા
ટીકાથ:- કુન જીવોના અધિકારથી તેમની ઉત્પત્તિના ક્ષેત્રરૂપ રત્નપ્રભા माना A२भ भयरम मा विनानु नि३५९) ४२॥ ५४।२ हे छ'कइणं भंते पुढवीओ पण्णत्ताओ' मावान पृथ्वी की ही छ ? उत्तर - 'गोयमा' है गौतम ! 'अट्ठ पुढवीओ पण्णत्ताओ' पृथ्वीच्या मा8 हेली छ 'तं जहा' २ मा प्रमाणे 'रयणप्पभा जाव अहे सत्तमा १ २त्नप्रभा, २ शाश. प्रमा, ३ वायु प्रमा, ४ ५४मा, ५. धूमप्रमा, ६ नमा , ७ तमस्तमा प्रमा,