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भगवतीसूत्रो विभङ्गज्ञानिनः, 'विभंगनाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई नियमा' विभङ्गज्ञानसाकारोपयुक्तानां त्रीणि अज्ञानानि नियमात् नियमतो भवन्ति । गौतमः पृच्छति-'अणागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ? हे भदन्त ! अनाकारोपयुक्ताः खलु अविधमानः आकारः-जाति-गुण-क्रियादिस्वरूपलक्षणो विशेषो यत्र तद् अनाकारं दर्शनं सामान्यज्ञानं, तत्रोपयुक्ताः उपयोगवन्तः तत्संवेदनका इत्यर्थः जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति अज्ञानिनो भवन्ति ? भगवानाह'पंच नाणाइं तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए' हे गौतम ! अनाकारोपयोगवन्तो जीवाः ज्ञानिनोऽज्ञानिन श्च भवन्ति, तत्र ज्ञानिनां लब्ध्यपेक्षया पञ्च ज्ञानानि मत्यादिअज्ञानवाले होते है । विभंगनाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अण्णाणाई नियमा' विभंगज्ञान साकारोपयोगवाले जीव अज्ञानी होते हैं । इनमें तीन अज्ञान-मत्यज्ञान; श्रुताज्ञान और विभंगज्ञान ये तीन अज्ञान नियम से होते हैं। अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'अणागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! जो जीव अनाकार उपयोगवाले होते हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? अनाकार उपयोगका तात्पर्य उस बोध से है कि जिस घोध मे जाति, गुण, क्रिया आदि रूप आकार नहीं झलकता है। ऐसा अनाकार उपयोग दर्शन रूप होता है। दर्शनका तात्पर्य सामान्य ज्ञान से है । इसमें उपयोगवन्त जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते है 'पंच नाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' हे गौतम ! अनाकार उपयोगवाले जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । जो जीव इनमें ज्ञानी होते हैं उनमें भने २ Y Aज्ञान डाय छ विभंगनाणसागरोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई नियमा' विज्ञान साशययोगवा 9 मशानी डाय छ भने તેઓમાં મત્યજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન અને વિભંગઅજ્ઞાન એ ત્રણ અજ્ઞાન નિયમથી હોય છે. प्रश्न :- अनागारोवउत्ताण भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी 'भगवन् ! २१ અનાકાર ઉપગવાળા હોય તે જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની ? અનાકારપગનું તાત્પર્ય એવા બોધથી છે કે જે બેધથી જાતિ, ગુણ, કિયા આદિ રૂપ આકાર પ્રગટ થતું નથી એ અનાકાર ઉપગ ર્થનરૂપ હોય છે. દર્શનને તાત્પયાર્થી સામાન્યજ્ઞાનથી છે તેમાં 6पयोगा जानी हाय छे ४ अचानी ? 6 :- पंचनाणाइ तिन्नि अन्नाणाइ 'भयणाए' गौतम ! सना।२ उपयोग ज्ञानी पडाय छ भने सानी पy હેય છે. તેમાં જે જીવ જ્ઞાની હોય છે. તે લબ્ધિની અપેક્ષાએ પાંચ જ્ઞાનવાળા હોય છે