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पमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ सू. १० लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४६५ अज्ञानानि भजनया, एवं श्रुताज्ञानसाकारोपयुक्ता अपि, विभङ्गज्ञानसाकारोपयुक्तानां त्रीणि अज्ञानानि नियमात् । अनाकारोपयुक्ताः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? पञ्च ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भजनया, एवं चक्षुदर्शनाचक्षुर्दर्शनानाकारोपयुक्ता अपि, नवरम् चत्वारि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि भननया। अवधिदर्शनानाकारोपयुक्ताः खलु पृच्छा, गौतम ! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिअनोणसागारोवउत्ता वि, विभंगनाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई नियमा) जो जीव सत्यज्ञान साकारोपयोगबाले होते हैं उनमें नियमसे तीन अज्ञान होते हैं । (अणागारोव उत्ताणं भते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी) हे भदन्त ! जो जीव अनाकारोएयोगवाले होते हैं, वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (पंचनाणाई तिम्नि अन्नाणाई भयणोए) हे गौतम ! जो जीव अनाकारोपयोगवाले होते हैं उनमें पांच ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजनाले-विकल्पसे होते हैं । (एवं चक्खुदंसण, अचक्खुदंसण अगागारोवउत्ता वि नवरंचत्तारि नाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए) इसी प्रकार चक्षुदर्शन, . अचक्षुदर्शन अनाकार उपयोगवाले जीवों में भी जानना चाहिये. परन्तु - इनमें चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। (ओहिंदसण अणागारोव उत्ताणं पुच्छा) हे भदन्त ! जो जोव अवधिदर्शन अनाकारोपयोगवाले होते हैं वे क्या ज्ञानी होले हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! ( नाणी वि अन्नाणी वि ) जो जीव उत्ताण तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए एवं सुयअन्नाण सागरोव उत्तावि विभंगनाण सागरोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई नियमा' रे भत्यज्ञान सा१२ 6योगवा હોય છે તેમનામાં ત્રણ જ્ઞાન ભજનાથી હોય છે. એ જ રીતે મૃતઅજ્ઞાન સાકર उपयोगवा हाय छे तेभा नियमथी त्रय अज्ञान डाय छे 'अणगारोवउत्ताणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' सगवान ! २ ७१ मना२ यावा हाय छ तया ज्ञानी डाय छमशानी ? 'पंचनाणाइ तिन्नि अन्नाणाइ भयणाए'
ગૌતમ જે જીવ અનાકાર ઉપગવાળા હોય છે તેઓએ પાચ જ્ઞાન તથા ત્રણ અજ્ઞા– मननाथ हाय छ 'एनं चक्खुदंसण, अचक्खुदंसण अनागारोवउत्तावि नवरं चत्तारि नाणाइ तिन्नि अन्नाणाइ भयणाए' को शव याशिन, मयशन અનાકાર ઉપગવાળા જીના વિષે પણ સમજવું પરંતુ તેઓ માટે ચાર જ્ઞાન અને त्रण अज्ञान सनाथ डाय छ ' ओहिंदसण अनागारोवउत्ताणं पुच्छा' भगवान् જે જીવ અવધિદર્શન અનાકરયોગવાળા હોય છે. તેઓ શુ જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાન ?