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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ सु. ९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम्
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पृच्छति - 'तस्स अलद्धिया णं पुच्छा' तस्य श्रोत्रेन्द्रियस्य अलब्धिकाः खलु जीवाकिं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ! नाणी वि, अम्नाणो वि' हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रियालब्धिका जीवाः ज्ञानिनोऽपि भवन्ति, अज्ञानिनोऽपि 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी. अत्येगइया एगनाणी' ये श्रोत्रेन्द्रियाधिका ज्ञानिनस्ते सन्ति एकके केचन द्विज्ञानिनो भवन्ति, सन्ति एकके तु एकज्ञानिनो भवन्ति, 'जे दुन्नाणी ते आभिणिवोहियनाणी सुयनाणी, जे एगनाणी ते केवलनाणी' ये द्विज्ञानिनस्ते आभिनिवोधिकज्ञानिनः श्रुतज्ञानिनो भवन्ति, ये एकज्ञानिनस्ते केवलज्ञानिनो भवन्ति तथा च श्रोत्रेन्द्रियालब्धिमन्तो जीवा ये ज्ञानिनस्ते प्रथमद्वयज्ञानशालिनः तेच अपर्या इनमें अज्ञानी होते हैं वे भजनासे तीन अज्ञानवाले होते हैं ।
अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'तस्स अलद्वियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! जो जीव श्रोत्रइन्द्रियके लब्धिवाले नहीं होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा नाणी व अन्नाणी वि' हे गौतम! श्रोत्रइन्द्रियकी अलब्धिवाले जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं- 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी, अत्थेगइया एगनाणी' जो इनमें ज्ञानी होते हैं उनमें कितनेक दो ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक एक ज्ञानवाले होते हैं । 'जे दुन्नाणी ते आभिणियोहियनाणी, सुयनाणी य' जो दो ज्ञानवाले होते हैं उनमें आभिनिबोधिक ज्ञानवाले और श्रुतज्ञानवाले होते हैं । 'जे एगनाणी ते केवलनाणी' और जो एक ज्ञानी होते हैं वे केवलज्ञानी ही होते हैं। यहां पर जो श्रोत्रेन्द्रियालब्धिक जीवोंको दो ज्ञानवाला कहा गया है उनमें अपर्याप्तक सासादन गुण
'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा ' हे भगवन्त ! नेव श्रोत्राद्रियसम्धि विनाना होय छे તેઓ નાની હાય છે કે અજ્ઞાની હાય છે ? ઉ ' गोयमा ' हे गौतम! 'नाणी वि अन्नाणी वि' श्रोत्राद्रियसम्धिवाणा छव ज्ञानी पागु होय छे गने अज्ञानी याशु હાય છે ' जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी, अत्येगइया एगनाणी ' तेथे डेंटलाई मे ज्ञानवाणा भने डेटला भेट ज्ञानवाणा होय े जे दुम्नाणो ते आभिणिवहिणीय, सुयनाणी य' के मे ज्ञानवाणा होय हे ते मालिनिमोधि ज्ञान भने श्रुतज्ञानवाणा होय छे. 'जे एगनाणी ते केवलनाणी ' भने ४ ज्ञानवाणा होय છે તે ફ્કત કેવળજ્ઞાનવાળા જ હેાય છે. અહીંઆ શ્રોત્રે દ્રિયલબ્ધિવાળા જીવાને એ જ્ઞાનવાળા કહ્યા છે તેમા અપર્યાપ્તક સાસાદન ગુણુસ્થાનમાં રહેવાવાળા સમ્યક્ દૃષ્ટિ