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भगवतीमत्रे नाणी य' ये द्विज्ञानिनस्ते आभिनिवोधिकज्ञानिनश्च, श्रुतज्ञानिनश्च भवन्ति, 'जे तिन्नाणी ते आभिणियोहियनाणी सुयनाणी, ओहिनाणी य' ये विज्ञानिनस्ते भाभिनिवोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनश्च भवन्ति, 'तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाइं, तिम्नि अन्नाणाई भयणाए' तस्य चारित्राचारित्रस्य अलब्धिकानां श्रावकभिन्नानां ज्ञानिनां पञ्च ज्ञानानि भजनया भवन्ति ये तु अज्ञानिनस्तेपां त्रीणि अज्ञानानि भजनयैव भवन्ति, दाणलब्धियाण पंचनाणाई, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए ' दानान्तरायकर्मक्षयक्षयोपशमाद् दाने दातव्ये वस्तुनि सुयनाणी य' दो ज्ञानवाले जीवोंमें मतिज्ञान, श्रुतज्ञान ये दो ज्ञान होते हैं तथा 'जे तिनाणी ते आभिणिवोहियनाणी, मयनाणी, ओहिलाणी य' तीन ज्ञानवालोंमें मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये तीन ज्ञान होते हैं । 'तस्स अलद्वियाणं पंचनाणाइं तिन्नि अन्नाणाई अषणाए' तथा जो जीव चारित्राचारित्र लब्धिवाले नहीं होते हैं- वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं. जो ज्ञानी होते हैं वे भजनाले पांच ज्ञानवाले होते हैं- क्यों कि ये श्रावक के चारित्र से भिन्न चारित्रवाले हैं। तथा जो यहां अज्ञानी होते हैं इनमें भी तीन अज्ञान भजनासे होते हैं अर्थात् दो अज्ञान तो होंगे ही-पर तीसरा अज्ञान-विभंगज्ञान हो भी सकता है- और नहीं भी हो सकता है। 'दाणलद्विया णं पंचनाणाइं, तिग्नि अन्नाणाई भयणाप' दानान्तराय कर्मके क्षयोपशमसे दान-दातव्य वस्तुमें जिनकी लब्धि होती है वे दानलब्धिवाले जीव हैं। ऐसे जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानो ने में ज्ञानवाणा मां भतिज्ञान भने श्रुतज्ञान से ज्ञान डाय छे. तण 'जे तिन्नाणी ते आभिणिवोहियनाणी, सुयनाणी ओहियनाणी य' त्र ज्ञानपणाभा भतिज्ञान, श्रुतज्ञान तथा अपधिज्ञान को नाय ज्ञान डाय छ 'तस्स अलद्धियाणं पंचनाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' ने 94 यारिया याश्श्यिसधि हित राय छे ते ज्ञानी પણ હોય છે અને અજ્ઞાની પણ હોય છે તેઓ ભજનાથી પાંચ જ્ઞાનવાળા હોય છે કેમકે તેઓ શ્રાવકના ચારિત્ર્યથી જુદા પ્રકારના ચારિવાળા હોય છે તથા જેમને અહીં અજ્ઞાની ગણવાના છે તેમનામાં પણ ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હોય છે. અર્થાત તેમનામાં બે અજ્ઞાન તે હોય જ પરંતુ ત્રીજું વિભાગ અનાન-વિભ ગજ્ઞાન પણ હોઈ શકે છે અને હેતું પણ नथी दाणलद्धियाणं पंचनाणाइ, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' हानान्तराय मना ક્ષપશમથી દાન-દાતવ્ય વસ્તુમાં જેની લબ્ધિ થાય છે તે દાનલબ્ધિ છવ છે. તેવા જીવ