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भगवती
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सा बलपण्डितवीर्यलब्धिः । गौतमः पृच्छति- इंदियदी मं भंते । कविहा पणता ?' हे भदन्त । इन्द्रियलब्धिः खन्द कतिविधा प्राप्ता ? भगवानाह - 'गोयमा ! पंचविदा पण्णत्ता' हे गौतम ! इन्द्रियलब्धिः खलु पश्वविधा प्रज्ञप्ता, 'त जहा- सोइ दियलद्धी, जाब फासिंदियलद्धी' तद्यथा - भोत्रेन्द्रियलब्धिः, यावत् प्राणेन्द्रियलब्धिः, रसनेन्द्रियलब्धिः चक्षुरिन्द्रियक विधः स्पर्शेन्द्रियलब्धिः । गौतमः पृच्छति - नाणलडिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अम्नाणी ?” हे भदन्त ! ज्ञानलब्धिकाः ज्ञानस्य लब्धियेषां तथा ज्ञानलब्धिमन्त इत्यर्थः जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति ? अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह - 'योगमा ! नाणी, नो अन्नाणी, अत्थेगड्या दुन्नाणी, एवं पंच नाणाइ भयणाए' वीर्यलब्धि है । बालपण्डित शब्दका अर्थ यहां पर संयतासंयत- देश विरति श्रावक लिया गया है। अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते है'इंदियलद्धिणं भंते ! कविहा पण्णत्ता' हे भदन्त ! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकारकी कही गइ है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहा पण्णत्ता' इन्द्रियलब्धि पांच प्रकारकी कही गई है । 'जहा' जैसे- 'सोइंदियलडी, जाव फासिंदियलद्धी' श्रोत्रेन्द्रिय लब्धि, यावत् चक्षुरिन्द्रियलब्धि, घ्राणेन्द्रियलब्धि, रसनेन्द्रियलब्धि, और स्पर्शनेन्द्रियलब्धि | अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'नाणलद्धियाणं भंते । जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! जो ज्ञानलब्धिवाले जीव है वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम! 'नाणी, नो अन्नाणी, अत्थेगया दुन्नाणी, एवं पंचाणाई भयणाए' ज्ञानलब्धिवाले जीव ज्ञानी होतेहैं, - અસ યતાસ યત દેવિતી શ્રાવક એવે થાય છે. પ્રશ્ન :- इंदियद्वीणं भंते कइविहा पण्णत्ता' हे भगवन । द्रिय बधि डेंटला अारनी अड्डी है, उत्तरमा प्रभु उ' गोयमा' हे गौतम! ' पंचविद्या पण्णत्ता' द्रिय सम् ियांन्य अारनी ४सी छे. ' तं जहा ' ? ' सोइंदिय लद्धी, जाव फासिंदियलद्धी, श्रोत्रेन्द्रिम લબ્ધિ, પ્રાણેન્દ્રિયલબ્ધિ રસનેન્દ્રિય લબ્ધિ, ચક્ષુરિન્દ્રિય લબ્ધિ અને સ્પર્શનેન્દ્રિય લબ્ધિ. प्रश्न :- नाणलद्धियाणं / भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी નાની ઢાય છે કે અજ્ઞાની હોય છે? ઉઃ– अन्नाणी अत्थेगइया दुन्नाणी, एवं
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पंचनाणाई भयणाए ' ज्ञानविाजा व ज्ञानी होय छे, अज्ञानी होता नथी ने
હે ભગવન્ ! જ્ઞાન લબ્ધિવાળા જીવા શું गोयमा ' हे गौतम! ' नाणी नो
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