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भगवती सूत्रे
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हे गौतम ! भवसिद्धिकाः केवलिनोऽपि भवन्ति अतो भवसिद्धिकाः सकायिका इव भजनया पञ्च ज्ञानिनः, एवं यावत्सम्यक्त्व न प्राप्तास्तावद् भजनव त्र्यज्ञानिनो द्वयज्ञानिनश्च वक्तव्याः । गौतमः पृच्छति - 'अभवसिद्धिया गं पुच्छा' हे भदन्त ! अभवसिद्धिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनो वा भवन्ति ? इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा ! नो नाणी, अनाणी तिनि अन्नाणाई भयणाए' हे गौतम ! अभवमिद्धिका नो ज्ञानिनो भवन्ति तेषां सदा मिध्यादृष्टित्वात्, अत एव अज्ञानिनो भवन्ति, तथाच अभवसिद्धिकानां त्रीणि अज्ञानानि भजनया भवन्ति, गौतमः पृच्छति - 'नोभवसिद्धियनोयमसिद्धियाणं भंते! जीवा किं नाणी, अन्नाणी ?' हे भदन्त ! नोभवसिद्धिकाप्रभु कहते हैं 'जहा सकाइया' भवसिद्धिक जीव केवली भी होते हैं इमलिये भ सिद्धिक सकायिक जीवोंकी तरह भजनासे पांचज्ञानवाले होते हैं । तथा जबतक ये सम्यक्त्वको प्राप्त नहीं करते हैं तबतक भजनासे ही ये व्यज्ञानवाले और दो अज्ञानवाले होते हैं ।
अव गौतमस्वामी से ऐसा पूछते हैं 'अभवसिद्धियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! अभवसिद्धिक जोब क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं है गौतम | अभवसिद्धिक जीव 'नो नाणी, अन्नाणी' ज्ञानी नहीं होते हैं किन्तु अज्ञानी होते हैं । अज्ञानी होनेपर भी इनमें 'तिन्नि अन्नाणाइ भगणाएं तीन अज्ञान भजनासे ही होते हैं । अभवसिद्धिक जीव सदा मिध्यादृष्टि होते हैं इसलिये ये ज्ञानी न होकर अज्ञानी ही होते हैं । अय गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि नो भवसिद्धिया नो अभवसिद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी
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ઔાય છે કે અજ્ઞાની ! ઉત્તરઃ, जहा सकाइया ' लवसिद्धि व देवजी पाय होय છે. એટલે ભવસિદ્ધિક જીવ સાયિક જીવેાની માફક ભજનાથી પાંચ જ્ઞાનવાળા હેાય છે તેમજ જ્યાંસુધી તેઓ સમ્યકૃત્વને પ્રા`ત કરતા નથી ત્યાસુધી ભજનાથી ત્રણ અજ્ઞાનવાળા थाने मे अज्ञानवाणा होय छे. प्रश्न :- अभवसिद्धियाणं पुच्छा ' हे भगवन અભવસિદ્ધિક જીવ જ્ઞાની હાય છે કે અજ્ઞાની હોય છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ 1 अलवसिद्धि व 'नो नाणी अन्नाणी ' ज्ञानी नही यशु अज्ञानीन होय छे भने अज्ञानीशोभां यशु तेमाने ' तिन्नि अन्नाणाई भयणाए , ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી ડાય છે. અભવસિદ્ધિક જીવ હમેશ મિથ્યા દષ્ટિક ય છે એટલા માટે તેએ અજ્ઞાનીજ हाय छे. अभ :- ' नो भवसिद्धिया नो अभवसिद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी