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भगवतीसूत्रे एकके चतुर्ज्ञानिनः, 'अत्थेगइया एगनाणी' सन्ति एकके एकज्ञानिनः इति, तदेव विशदयन्नाह-'जे दुन्नाणी ते आभिणिवोहियनाणी य, मुयनाणी य' 'ये जीवा द्विज्ञानिनस्ते आभिनिवोधिकज्ञानिनश्व, श्रुतज्ञानिनश्च भवन्ति, 'जे तिन्नाणी ते आभिणिवोहियनाणी मुयनाणी, ओहिनाणी' ये जीवास्त्रिज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिन्ः, अवधिज्ञानिनो भवन्ति, 'अहवा आभिणिवोहियनाणी, सुयनाणी, मणपज्जवनाणी' अथवा त्रिज्ञानिनो जीवा
आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनो भवन्ति, 'जे चउनाणी 'ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी, मणपजवणाणी' ये जीवाश्चज्ञानवाले होते हैं 'अत्थेगइया तिन्नाणी' कितनेक जोव तीनज्ञानवाले होते हैं 'अत्थेगइया चउनाणी' कितनेक जीव चारज्ञानवाले होते हैं 'अत्थेगइया एगनाणी' और कितनेक जीव एकज्ञानवाले होते हैं । इसी बातको विशद करनेके अभिप्रायसे सूत्रकार कहते है 'जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी य, सुयनाणीय' जो जीव दो ज्ञानवाले कहे गये हैं वे आभिनीबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान इन दो ज्ञानवाले हैं 'जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहि. नाणी' जो जीव तीन ज्ञानवाले कहे गये हैं वे आभिनियोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान इन तीन ज्ञानोंवाले होते हैं ' अहवा' आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, मणपज्जवनाणी' आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और मनःपर्यवज्ञान इन तीन ज्ञानवाले होते हैं । 'जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहियनाणी, मणपज्जवस पेटी Belk १ मे नानपाय छे. 'अत्थेगइया तिन्नाणी' ८६४ व त्रय शानदार होय छे. 'अत्थेगइया चजनाणी' मा यार ज्ञानवा लेप छ 'अत्थेगइया एगनाणी' भने ४८४ मे ज्ञानी डाय छे मे०१ वातने २५ ४२वाना भलिभायथा सूत्रा२ ४ छ : 'जे दुन्नाणी ते आभिनिबोहियनाणी य, सुयनाणी य' १ मे सानपणां हे छ त मानिनिमाधि जान भने श्रुतज्ञान मे में शानदार छ. 'जे तिन्नाणी ते आभिनिवौहियनाणी, मुयनाणी, ओहिय नाणी' ने पत्र शानणां हेस ते मानिनिमाधि ज्ञान, श्रुतज्ञान भने सपधिज्ञानani डाय छ 'अहवा आभिनिबोधिय नाणी, मुय नाणी, मण्णपज्जव नाणी' मालिनिमाधिज्ञान, श्रुतज्ञान मन मन:पय वज्ञानवाजा होय छे. 'जे चउनाणी ते आभिणिबोहिय नाणी, मुय नाणी ओहिनाणी मणपज्जव नाणी'