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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ सु. ४ ज्ञानमेनिरूपणम् ३१३ मत्यज्ञानम् । तत् किं अथ श्रुताज्ञानम् ? श्रुताज्ञानं यदेभिः अज्ञानिभिः मिथ्यादृष्टिभिः यथानन्द्याम् यावत् चत्वारो वेदाः साङ्गोपागा, तदे तत् श्रुताज्ञानम् । अथ किं तत् विभङ्गज्ञानम् ? विभङ्गझानम् अनेकविधम् पज्ञप्तम्, तद्यथा-ग्रामसंस्थितम्, नगरसंस्थितम्, यावत्-सन्निवेशसंस्थितम्, द्वीपस स्थितम्, समुद्रस स्थितम्, वर्षसस्थितम्, वर्षधरसंस्थितम्, पर्वतसंस्थितम्, वृक्षसं स्थितम्, स्तूपसंस्थितम्, भी जानना चाहिये । ( नवरं एगठियवजं जाव नो इंदियधारणा, सेत्तं मइ अन्नाणे ) परन्तु जो विशेषता है वह इस प्रकार से है कि वहां -पर आभिनियोधिकज्ञानके प्रसंगमें अवग्रहादिके एकार्थिक समानार्थक शब्द कहे गये हैं सो उनके सिवाय यावत् नोइन्द्रिय धारणातक कहना चाहिये इस तरह धारणा कही इस प्रकारसे मति अज्ञान कहा। (से किंत, सुय अनाणे) हे भदन्त ! ताज्ञान कितने प्रकारका है ? (सुय अन्नाणे जं इमं अनाणएहि, मिच्छदिट्टिएहिं जहा नंदीए जाने चत्तारि वेदा संगोवंगा सेत्त सुयअन्नाणे) हे गौतम ! जो अज्ञानी मिथ्यादृष्टियोंने प्ररूपित किया है इत्यादि नंदीसूत्र में कहे अनुसार यावत् सांगोपाङ्ग चारवेद वे श्रुत अज्ञान इस प्रकार श्रुताज्ञान कहा गया है । (से किं त विभंगनाणे) हे भदन्त ! विभङ्गज्ञान कितने प्रकारका कहा गया है ? (विभंगनाणे अणेगविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! विभंगज्ञान अनेक प्रकारका कहा गया है । (तंजहा) जैसे (गामसंठिए, नगरसंठिए, जाच संनिवेससंठिए, दीवसठिए, समुहसंठिए, वाससंठिए, वासहरसंठिए, पव्वयसंठिए, रुक्खसंठिए, थूभसंठिए हयसंठिए, गयसએટલી જ છે ત્યાં આગળ આમિનિબેધિક જ્ઞાનના પ્રસ ગમા અવગ્રહાદિના એકાથક સમાન અર્થવાળા શબ્દ કહેલા છે તે તેના સિવાય યાવત– ને ઈન્દ્રિય ધારણા પર્યત सभावानु छे से प्रभाणे पार भने भति जान ह्याथे से कि । त सुय अन्नाणे, हे भगवन श्रुतजान Rना खेसा छ? मुय अन्नाणे जे इमे अन्नाणएहि मिच्छद्दिट्ठिएहिं जहा न दीए जाव चत्तारि वेदा संगोवगा से त्त- सुय अन्नाणे' हे गौतम! 2 मज्ञानी भियाद्रष्टियामे निषित छ ઈત્યાદિનદીસૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણે યાવત– સાગે પગ ચાર વેદ તે શ્રુતજ્ઞાન એ રીતે श्रुताज्ञान सा छे. से कि त विभंगनाणे'. 3 , मन! , विज्ञान या AURनु ४९ छ ?, 'विभंग नाणे अणेगविहे पण्णत्ते' गौतम ! निशान मने प्रानु-हेद छ त जहा' भ- गांमसंठिए, नगरसंठिए, जाव 'सन्निवेससंठिए, 'दीवसंठिए, समुदसठिए, वाससठिए, वासहरसं ठिए,
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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