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भगवती सूत्रे
एकत्वे एक, इत्येवं नव, त्रिकयोगे तु त्रय एव भवन्ति, इत्येवं सर्वे पञ्चदश भवन्ति अथ पञ्चादिद्रव्यपुद्गल परिणामप्रकरणानि अतिदिशन्नाह - ' एवं एएणं कमेण पच छ मत्त जात्र दस सखेज्जा, अस खेज्जा अणंता यदव्त्र । भाणियन्त्रा' एवम् उपर्युक्तरीत्या एतेन द्रव्यचतुष्कान्तपरिणाम विषय केण अभिलापक्रमेणैव पञ्च, पर, सप्त, यावत्- अष्ट, नत्र, दश, संख्येयानि, अम ख्येयानि, अनन्तानि च द्रव्याणि भणितव्यानि, दुया सजोएणं, तिया म जोएणं, जान दस संजोएणं, बारस सजोएणं उबर्जु जिऊण जत्थ जत्तिया सयोगा उ सच्वे भाणियना' किस योगेन, त्रिकसंयोगेन, यावत् चतुष्कस योगेन, पञ्चकस योगेन, के त्रित्व में एक विकल्प, तथा दोनों के भी द्वित्व में एक विकल्प, तथा द्वितीय के त्रिवसें और अन्यके एकत्व में एक विकल्प इस तरह से कुल विकल्प ३+९+३ = १५ होते हैं । अब सूत्रकार ऐसा प्रकट करते हैं कि- 'एव एएणं कमेणं पंच, छ सत्त, जाव दस संखेज्जा, असंखेजा अनंता य दव्वा भाणियन्वा' जैसा यह द्रव्य चतुष्कान्त परिणाम विषयक अभिलाप प्रकट किया गया है इसीके अनुसार पांच छ, सात, यावत्आठ, नौ दश, संख्यात, असंख्यात और अनन्त द्रव्योंको भी द्विकसंयोग से, त्रिकसंयोग से, यावत्-चतुष्क संयोग से पांच के संयोगसे, छहके संयोगसे, सात के संयोग से, आठके संयोग से, नौके संयोगसे, दशके संयोगसे, द्वादशके संयोग से, उपयोगपूर्वक विचार करके कहना चाहिये । अर्थात् जिस प्रकार से चार द्रव्योंके प्रकरण में ऐसा प्रकट किया गया है कि ये चारों द्रव्य प्रयोगपरिणत બીજાના ત્રિત્વમા એક વિકલ્પ અને બંનના, દ્વિત્વમા એક વિકલ્પ તથા દ્વિતીયના ત્રિવમાં અને અન્યના એકત્વમા એક વિકલ્પ એ રીતે આ નવ વિકલ્પ થાય છે ત્રિકના ये गया देवण गण विहस्य होय छे. मे राते उस विष 3 + + 3 = १५ थाय छे. हुवे सूत्रार पाय, छ, विगेरेना विषयसां नीचे प्रभा डे छे:- एएणं कमेणं पत्र, छ, सत्त जात्र, दस, संखेज्जा, अस खेज्जा अणंता य दन्त्रा भाणियव्वा' જેવી રીતે આ દૃ ય ચતુષ્કાન્ત પરિણામ વિષયક અભિલાપ પ્રગટ, કરેલ છે એ જ રીતે चांग, छ, सान,–यावत्-आठ, नव, दृश, सौंध्यात, असंख्यात, अने अनंत द्रव्योने પણ त्रियोगथ', यावत् - तु संयोगथी, पांयना संयोगथी, छना संयोगथी, સાતના સ યોગથી નવના સયેાગયી, દશના સયેાગથી, બારના સંયોગથી ઉપયેગપૂર્ણાંક વિચાર કરીને સમજી લેવું અર્થાત્ જે પ્રકારે ચાર દ્રવ્યેાના પ્રકરણમા જેટલું પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે કે એ ચારે દ્રવ્યો પ્રયેાગપરિણત હોય છે, મિશ્ર પરિણત પણ હોય છે, વિસસા