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________________ २४८ भगवतीसगे परिणत भवति, एक मिश्रपरिणतम् , द्वे च विस्रसापरिणते भवतः१०, 'अहवा एगे पओगपरिणए दो मीसापरिणया, एगे दोससापरिणए ११ अथवा एक पयोगपरिणत भवति. हे मिश्रपरिणते भवतः, एक विस्त्रसापरिणत भवति ११, 'अहवा दो पओगपरिणया, एगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए१२' अथवा द्रे प्रयोगपरिणते भवतः, एक मिश्रपरिणतम् , एक विस्त्रसापरिणत भवति, गौतमः पृच्छति- 'जइ पओगपरिणया कि मणप्पओगपरिणया, वइप्पओगपरिणया, कायप्पओगपरिणया ?' हे भदन्त ! यानि द्रव्याणि प्रयोगपरिणतानि तानि किं मनःप्रयोगपणितानि, वचःप्रयोगपरिणतानि, कायप्रयोगपरिणतानि परिणए, दो वीसलापरिणए'९ अथवा इनमेंसे एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है और दो द्रव्य विस्रसा परिणत होते हैं । 'अहवा एगे पओगपरिणए, दो भीसापरिणए, एगे वोलसा परिणए२' अथवा एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं, एक द्रव्य विस्त्रसापरिणत होता है । 'अहवा दो पओगपरिणया एगे सीसा परिणए, एगे वीससा परिणए' दो द्रव्य प्रयोग परिणत होते हैं, एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है, एक द्रव्य वित्रसा परिणत होता है । अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'जइ पओगपरिणया कि मणप्पओण परिणया, वप्पओग परिणया,कायप्पओगपरिणया' हे सदन्त ! जो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं वे क्या मनःप्रयोग परिणत होते हैं ? या वचन प्रयोगपरिणत होते हैं ? या कायप्रयोग । परिणत भने ४ ०५ विससा ५२४त हाय छे. १ ' अहवा एगे, पओगपरिणए एगे मीसा परिणए, दो वीससा परिणए' अथवा मे द्रव्य प्रयोगपरित, मे न्य भिश्रपरिणत भने मे द्रव्य विखसा परिणत उय छे २ 'अहवा एगे पओगपरिणए, दो मीसा परिणए, एगे वीससा परिणए' मया से द्रव्यप्रयोग પરિણત, એક દ્રવ્ય મિશ્ર પરિણત અને એક દ્રવ્ય વિસસા પરિણત હોય છે ૨ 'अहवा एगे पओगपरिणए दो मीसापरिणए एगे वीससा परिणए ' मया मे દ્રવ્ય પ્રવેગ પરિણત બે દ્રવ્ય મિશ્ર પરિણત અને એક દ્રવ્ય વિસ્રસા પરિણત હોય છે ૩ 'अहवा दो .पओगपरिणया, एगे मोसा परिणए, एगे चीससापरिणए' બે દ્રવ્ય પ્રોગપરિણત, એક દ્રવ્ય મિશ્રપરિણત અને એક દ્રવ્ય વિસસાપરિણુત હોય છે गौतम स्वामी छे छे - 'जड पओगपरिणया कि मणप्पओग परिणया वइप्पओगपरिणया, कायप्पभोगपरिणया, हे सगवन् रे द्रव्य प्रयोगमारत હોય છે તે શું મન પ્રવેગ પરિણત હોય છે? કે વચનપ્રયોગ પરિણત કે કાયપ્રયોગ
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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