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भगवतीम्रो सकाशाद् धर्मोपदेशं श्रुत्वा प्रतिगता, 'तए णं से कालोदाई अणगारे अन्नया कयाइं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ' ततः खलु स कालोदायी अनगारः अन्यदा कदाचित् यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः, तत्रैव उपागच्छति, 'उवागच्छित्ता समगं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं व्यासी' उपागम्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा एवंम्वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत-'अधिणं भंते ! जीवाणं पावाकम्मा पावफलविवाग संजुत्ता कजति ? हे भदन्त ! अस्ति खलु जीवानां पापानि कर्माणि-प्राणातिपातादि-मिथ्यादर्शनशल्यपर्यन्तानि अष्टादश पापकर्माणि, पापफलविपाकसंयुक्तानि क्रियन्ते भवन्ति ? हुए यावत् उस गुणशिलक उद्यान में पधारे-धर्मका उपदेश सुनकर आई हुई परिषद् अपने २ स्थान पर बापिल गई। 'तएणं से कालोदाई अणगारे अन्नया कयाइं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह' इसके बाद कालोदायी अनगार किसी एक समय जहां पर श्रमण भगवान महावीर थे वहां पर आये. 'उवागच्छित्ता' वहां आकर उन्होंने 'समणं भगवं महावीरं वंदइ, नसंसह' श्रमण भगवान् महावीर को वंदनाको 'वंदित्ता नमंसित्ता' वंदना नमस्कार करके फिर 'एवं क्यासी' प्रभु से उनोंने इस प्रकार से पूछा-'अस्थिणं भंते ! जीवाणं पावाकम्मा पावफलविवागसंजुत्ता कन्जति' हे भदन्त ! जीवों के पापकर्म-प्राणातिपातआदि से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक के अठारह १८ पापकर्म-पापफलरूप विपाकसे संयुक्त होते हैं क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, अस्थि' हां, कालोदायिन् ! स्थाने पाछ। श्या 'तएण से कालोदाई अणगारे अनया कयाइं जेणेच समणे भगव महाबीरे तेणेव उवागच्छइ' त्या२ मा ४ समये हायी भएणुगार न्या महावीर प्रभु वि२२४ भान हुना त्या माव्या "उवाणच्छिता' त्या मावीन तेभो समण भगव महावीरं वंदइ, नमसई' श्रम लगवान महापारने ! ४॥ भने नभ२४॥२ ४ा, "व दित्ता नम सित्ता' भने । नभ२४१२ ४शने "एवं वयासी' तभा महावीर प्रसुने २मा प्रभारी प्रश्न पूछया- 'अस्थिण भते ! जीवाण पावाकम्मा पावफलविवागस जुत्ता कजति ? ' महन्त ! वाना पा५४ (आयातित मा १८ पा५४) शुं पाया३५ विधावा हाय छे ? उत्तर- 'हता. अत्थि' હે કાલોદાયી! જીવને પાપકર્મો પાપફળરૂપ વિપાકવાળાં અવશ્ય હોય છે.