SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 772
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्रे ७४० एवम् अवादीत् पूर्वमपि मया श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके स्थूलः प्राणातिपातः प्रत्याख्यातः यावज्जीवम्, एवं यावत् स्थूलः परिग्रहः प्रत्याख्यातः यावज्जीवम्, इदानीमपि अहं तस्यैव भगवतो महावीरस्य अन्तिके सर्व प्राणातिपातं प्रत्याख्यामि यावज्जीवम्, एवं यथा स्कन्दकः यावत् एतदपि खलु चरमैः उच्छ्वासनिःश्वासे व्युत्सृजामि इतिकृत्वा सन्नाहपट्टे मुञ्चति, करता हूं। वहां रहे हुए वे भगवान मुझे देखें । इस प्रकार कह कर उसने यावत् वंदना की नमस्कार किया (वदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी) वदना नमस्कार करके फिर उसने ऐसा कहा (पुचि पि मए समणस्स भगवओ महावीरम्स अंतिए थूलाए पाणावाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए एवं जाव लाए परिग्गहे पञ्चखाए जावज्जोवाए) पहिले भी मैंने श्रमण भगवान् महावीर के समीप स्थूल प्राणातिपात का प्रत्याख्यान जीवनपर्यन्त किया है यावत् इसी तरहसे मैने स्थूल परिग्रहका जीवनपर्यन्त प्रत्याख्यान किया है । (ग्राणि पिणं अहं तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि, जावज्जीवाए एव जहा खंदओ जाव एयपि णं चरमेहि ऊसासनीसासेहिं बोसिरामि त्ति कट्टु सन्नाहपट्ट मुयड) अब इस समय भी मै उसी भगवान् महावीरके समक्ष समस्त प्राणातिपातका जीवन पर्यन्त प्रत्याख्यान करता हूँ । इस तरह से समस्त कथन स्कन्दकी तरहसे जानना चाहिये । यावत् इस शरीरका भी त्याग अन्तिम श्वासो કરૂ છું અને નમસ્કાર કરૂ છું ત્યાં રહેલા ભગવાન મારા તરફ નિગાહ કશ. या प्रभाो उहीने तेथे वा- नमस्र पर्यन्तनी विधि री ( वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी) १४९णा नमस्कार उरीने तेथे या प्रभा - ( पुत्रि पि मए सम्मणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए एवं जाव लाए परिग्गहे पच्चकखाए जावज्जीवाए) चडेसां यथ में श्रमण ભગવાન મહાવીરની સમક્ષ સ્થૂલ પ્રાણાતિપાતના જીવનપર્યન્તના પ્રત્યાખ્યાન કર્યાં છે, એ જ પ્રમાણે સ્થૂલપરિગ્રહ પન્તના અણુવ્રતેના મેં જીવનપર્યંન્તના પ્રત્યાખ્યાન કરેલાંછે. ( इयाणि पिणं अहं तम्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवाय पच्चक्खामि, जावज्जीवाए - एवं जात्र खंदओ - जाव एवं पिणं चरमे हि ऊसास नीसाहि वोसिरामि त्ति कट्टु सन्नाहपट्टे सुयइ) हुवे अत्यारे पशु मे ४ भगवान મહાવીરની સમક્ષ સમસ્ત પ્રાણાતિપાતના જીવનપર્યંત પ્રત્યાખ્યાન કરૂ છુ. એ જ પ્રમાણે સમસ્ત કથન સ્કન્દ્વઅણુગારના કથન પ્રમાણે સમજવું. આ શરીરના ત્યાગ અતિમ
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy