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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. ९ सू. ५ वरुणना गनप्ठ्कचरित्रम् ७३९ सस्तारकमारुह्य पूर्वाभिमुखः संपर्यङ्कनिषण्णः करतल० यावत् कृत्वा एवम् अवदत् - नमोऽस्तु खलु अद्वयो भगवद्धयो यावत् समाप्तेभ्यः, नमोस्तु खलु श्रमणाय भगवते महावीराय, आदिकराय यावत् समाप्तुकामाय मम धर्माचार्याय धमोपदेशकाय, वन्दे खलु भगवन्तं तत्रगतम् इहगत, पश्यतु मां स भगवान् तत्रगतः, यावत् वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा छूटा कर दिया. छुटा कर उन्हें विसर्जित कर दिया। उन्हें विसर्जित कर फिर उसने डाभ का सथारा बिछाया (दग्भसंधारणं संथरिता दव्भसंथारगं दुरूहइ) डाभ का संथारा बिछाकर फिर वह उस दर्भ के सथारे पर बैठ गया । (दम्भसथारगं दुरुहिता पुरस्थाभिमु संपलियंकनिसन्ने करयल जाव-कर एवं व्यासी) दर्भ के संथारे पर बैठ कर उसने पूर्वदिशा की तरफ मुख किया और पर्यङ्कासन मांडकर दोनों हाथों को जोडकर यावत् उसने इस प्रकार से कहा( नमोत्थूणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव सपत्ताण, नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स, आइगरस्स जाव सपाविजकामस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स) यावत् सिद्धगति को प्राप्त हुए अरिहंत भगवन्तों को नमस्कार हो. श्रमण भगवान् महावीर को नमस्कार हो. जो तीर्थ के आदि कर्ता हैं, यावत्-सिद्धि को प्राप्त करने वाले हैं, तथा जो मेरे धर्माचार्य और धर्म के उपदेशक हैं (वंदामि णं भगवंतं तत्थाय इहगए पासउ मे भगव तत्थगए जाव बंदर, नमसइ) वहां रहे हुए भगवान् को यहाँ रहा हुआ मैं नमस्कार घोडामने छूटा पुरीने तेथे हर्मनो सथा। मिछान्यो (दब्भस थारगं संथरित्ता दव्भ स्थारगं दुरूहइ) हर्भाने सथारो मिछावाने ते वरुणु ते हर्मना सारा पर मेसी गये। (दव्भस थारगं दूरूहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसन्ने करयल जाव कट्टु एव वयासी) हर्भाना मिछाना पर मेसीने ते पूर्व दिशा तर मुख राम्युं मने पर्य असन भांडीने, जन्ते हाथ लेडीने या अभा उधु- (नमोत्थूण अरिह ताणं भगवताणं जाव सपत्त्राणं, नमोत्थूणं समणस्स भगवओ महावीरस्स, आडगरस्स जात्र स पाविकासस्स सम धम्मायरियस धम्मो देसगस्स) यावत् सिद्धिगतिने પામેલા અહુત ભગવાનને નમસ્કાર ! તીર્થના આકિત્તત્ત્ત, યાવતુ સિદ્ધગતિને ભવિષ્યમા પ્રાપ્ત કરનારા, મારા ધર્માંચા અને ધર્માંપદેશક, એવા શ્રમણ भहावीरने भारा नभस्डार है। (वंदामि ण भगवंतं तत्थगयं इहगए पासउ मे भगवं तत्थगए जाव वंदड, नमसइ) त्या रडेला भगवानने सही रहे। हुवा ભગવાન ,
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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