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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.९ सू.२ महाशिलाकण्टकसंग्रामनिरूपणम् ६८५ हस्तिराजं परिकल्पयन्ति, हय गज-यावत् सन्नाहयन्ति, सन्नाह्य यत्रैव कुणिको राजा तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागत्य करतल-यावत् कूणिकस्य राज्ञः ताम् आज्ञप्तिकाम् प्रत्यर्पयन्ति । ततः खलु स कूणिको राजा यौव मज्जनगृहं तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य मज्जनगृहम् अनुप्रविशति, अनुप्रविश्य स्नातः उदाइं हत्थिरायं पडिकप्पेंति, हय-गय-जाव सन्नाहेंति-संनाहित्ता जेणेव कूणिएराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव कूणियस्स रनो तमाणत्तियं पञ्चप्पिणति) स्वीकार करके फिर उन्हों ने कुशल आचार्यों के उपदेश द्वारा प्राप्त तीक्ष्ण भतिकल्पना के विकल्पों से औपपातिक सूत्र में कहे हुए अनुसार यावत् भयंकर तथा जिस के समक्ष युद्धकरना बहुत ही कठिन है ऐसे उदायी हस्तिराज को तैयार किया-सजाया तथा घोडा-हाथी इत्यादि से युक्त यावत् चतुरंग सेना को तैयार किया. तैयार करके- सजा करके- फिर वे जहां पर कूणिक राजा थे वहाँ पर आये- वहां आकर उन्हों ने राजा को बडी नम्रता के साथ दोनों हाथ जोडकर कहा हे स्वामिन् । जैसी आपने आज्ञा दी है उसके अनुसार हमने सब तैयारी करली है। ( तहणं से कूणिए राया जेणेव मजणघरं तेणेव उवागच्छइ) इसके बाद वे कूणिक राजा जहां पर स्नानघर था वहां पर आये (उवागच्छित्ता) वहां आकर के (मज्जणघरं अणुउदाइं हत्थिरायं पडिकप्पंति, हय-गय-जाव सन्नाहे ति-संनाहित्ता जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागच्छ ति, उवागच्छित्ता करयल जाव कुणियस्स रण्णो तमाणत्तियं पञ्चप्पिणंति) २०नी माज्ञाने। २०४।२ ४शन तभा पुस આચાર્યોના ઉપદેશ દ્વારા પ્રાપ્ત થયેલી તીણ મતિકલ્પનાના વિકલ્પ અનુસાર અને પપાતિક સૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણેની પદ્ધતિથી તે ભયજનક અને જેની સાથે યુદ્ધ કરવું અતિશય મુશ્કેલ થઈ પડે એવા હસ્તિરાજ ઉદાયીને તૈયાર કર્યો. ઘેડા, હાથી, રથ દ્ધાએથી ચુકત ચતુર ગ સેનાને પણ તયાર કરી. આ રીતે હાથી તથા સેનાને તૈયાર કરીને, તેઓ જ્યાં કૂણિક રાજા વિરાજતા હતા ત્યાં આવ્યા. ત્યાં જઈને તેમણે ઘણી નમ્રતાપૂર્વક બને હાથ જોડીને રાજાને આ પ્રમાણે કહ્યું- “હે રાજન! આપની माज्ञानुसारनी सघजी तैयारीमा समे ४१ दीधी छे' (तएणं से कूणिए राया जेणेव मजणघरं तेणेव उवागच्छइ) त्यारमाणि : 1 न्यां नानगड तु त्यां पडेा-या (उवागच्छित्ता) त्यis (मज्जणघरं अणुप्पविसइ) तेभरे ते
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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