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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ७ उ. ७ . २ कामभोगनिरूपणम्
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चतुरिन्द्रियाणां जीवानां पृच्छा वर्तते, तथा च चतुरिन्द्रियाः किं कामिनो भवन्ति ? अथ च भोगिनो भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! चउरिंदिया कामी वि; भोगी वि' हे गौतम ! चतुरिन्द्रियाः कामिनोऽपि भवन्ति, अथ च भोगिनोऽपि भवन्ति, गौतमः पृच्छति' से केणद्वेणं जाव भोगी वि 2' हे भदन्त तत् केनार्थेन यावत् चतुरिन्द्रियाः कामिनोऽपि भोगिनोऽपि च भवन्ति ? भगवानाह - 'गोयमा ! चक्खिदियं पडुच्च कामी, घाणि दिय जिब्भिदिय - फासिंदियाई पडुच्च भोगी' हे गौतम ! चतुरिन्द्रियाः चक्षुरिन्द्रियं प्रतीत्य = अपेक्ष्य कामिनो भवन्ति, घ्राणेन्द्रिय-जिहवेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रियाणि प्रतीत्य अपेक्ष्य भोगिनो भवन्ति, 'से तेणट्टेणं जाव भोगी त्रि' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावत् चतुरिन्द्रियाः कामिनोऽपि भवन्ति, अथ च भोगिनोऽपि समझाई गई है । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'चरिंदियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! चौ इन्द्रियजीव क्या कामी होते हैं या भोगी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं कि - 'गोयमा ! चउरिदिया कामी वि भोगी वि' गौतम ! चौइन्द्रियजीव कामी भी होते हैं । और भोगी भी होते हैं' से केद्वेणं जाव भोगी वि' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि चौइन्द्रिय जीव कामी भी होते हैं और भोगी भी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'चक्खिदियं पहुचकामी, घानिंदिय जिभिदियफासिंदियाई पडुच भोगी' चौइन्द्रिय जीव चक्षु इन्द्रिय की अपेक्षा तो कामी होते हैं और घाणेन्द्रिय तथा जिह्वा इन्द्रिय की अपेक्षा वे भोगी होते हैं और । 'से तेणट्टेणं जाव भोगी वि' इस कारण मैने हे गौतम ! ऐसा कहा है कि आयता, महावीर अलु ४ है ' गोयमा ! चउरि दिया कामी वि, भोगी वि હે ગૌતમ ! ચતુરિન્દ્રિય જીવા કામી પણ હોય છે અને ભાગી પણ હાય છે તેનુ કારણ भगुवा नभित्ते गौतम स्वामी महावीर अलुने येवो अश्न पूछे छे हैं' से केणद्वेणं भंते ! जाव भोगी वि ? हे महन्त साथ शामेवु हो । यतुरिन्द्रय જીવા કામી પણ હોય છે, અને ભાગી પશુ હાય છે ? તેના ઉત્તર આપતા મહાવીર अनु ४ छे ! ' गोयमा ! चक्खिंदियं पडुच्च कामी, घार्णिदिय जिव्भिंदिय फासिदियाइ पडुच्च भोगी ' हे गौतम । यतुरिन्द्रिय कवे। यक्षुरिन्द्रियनी अपेक्षा કામી હોય છે, અને ઘ્રાણેન્દ્રિય રસનેન્દ્રિય અને સ્પર્શેન્દ્રિયની અપેક્ષાએ ભાગી હૈાય છે. ' से तेणद्वेणं जाव भोगी त्रि' हे गौतम! ते आर मे मे ४ छे
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