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भगवती सूत्रे आकारभावमत्यवतारो भविष्यति ? गौतम ! भूमिः भविष्यति अङ्गारभृता, मुर्मुर भूता, क्षारिकभूता, तप्तकटाहता, तप्तसमज्योतिर्भूता, धूलिबहुला, रेणुबहुला, पहुबहुला, पनकवहुला, चलनीवहुला, बहूनां धरणिगोचराणाम् सच्चानां दुर्निष्क्रमा चापि भविष्यति ॥ सू० ३ ||
टीका- 'जंबुद्दी वे णं भंते! दीवे भारहेवासे इमीसे ओसपिणीए दुसम दुसमाए उत्तमकट्टपत्ताए भरहस्य वासस्स केरिसए आगारभाव पडोयारे पानी के समस्त निर्झर खड्ढे, दुर्गम तथा विषम भूमि में रहे हुए ऊँचे नीचे स्थान सब एक से हो जावेंगे । (तीसे णं समाए भारह वासस्स भूसीए केरिसए आगारभाचपडोयारे भविस्सइ ) हे भदन्त ! उस छठे कालमें भारतवर्ष की भूमिका आकार भाव प्रत्यवतार कैसा होगा ? (गोयमा) हे गौतम! (भूमि भविस्सर, इंगालभूया, मुम्मुरभूया, छारियभूया, तत्तकवेल्लुयभूया, तत्तसमजो भूयां, धूलिबहुला, रेणुबहुला, पंकबहुला, पणगबहुला, चलणिबहुला, बहूणं धरणिगोयराणं सत्ताणं निकम्मा याचि भविस्सइ) उस समय अंगार जैसी, मुर्मुर-कंडेकी अग्नि जैसी, क्षारिकभूत, अत्यन्त तपे हुए लोहे के तवा जैसी, ताप द्वारा अग्नि जैसी, बहुत धूलिवाली, बहुत रजवाली, बहुत कीचडवाली, बहुत शैवाल - काईवालो और जिस पर भूमिगोचर प्राणियोंका चलना बहुत कठिन हो जाय ऐसी दुर्गम भूमि भारतवर्ष की हो जावेगी ।
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સિવાયની નદીઓ, સમસ્ત ઝરણુાંએ, ખાડા અને દુર્ગામ તયા વિષમ ભૂમિમાં આવેલાં जिया नीयां स्थानो थोड सरमा पनी भये (तीसे णं समाए भारहवासस्स भूमिए केरिसए आगारभाव पडोयारे भविम्स ? ) हे लहन्त! ते छठ्ठी आरामां भारतवर्षानी भूमिनो यार लाव अत्यवतार (भेटले ! भूमि स्व३५) देवा ? (गोयमा ! ) हे गौतम! (भूमि भविस्सर इंगालभूया, मुम्मुरभूया, छारियभूया, तत्तकवेल्लयभूया, तत्तसमजोइभूया, वृलिबहुला, रेणुवहुला, पंकवहुला, पणगबहुला, चलणिवा, बहूणं धरणिगोयराणं सत्ताणं दुनिकम्मा यावि भविस्सर) તે સમયે ભૂમિ અગા જેવી, છાણાની અગ્નિજેવી ક્ષારિભૂત (ભસ્મભૂત) અને તપા વેલા લાઢાના તવા જેવી હશે તાપને લીધે ભૂમિ અગ્ન જેવી લાગશે, બહુજ રજવાળી, અહુજ ધૂળવાળી, બહુજ કીચડવાળી બહુજ શેવાળવાળી, અને જેના પર સ્થળચર પ્રાણી-ન ચાલવુ ઘણુ મુશ્કેલ થઇ પડે, એવી દુ°મ ભૂમિ તે વખતે ખની જશે.