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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.७३.६ सू.१ नैरयिकाणां आयुर्वधादिस्वरूपनिरूपणम् ६१९ पडिसंवेदेई' हे भदन्त ! स खलु नरकोत्पत्तियोग्यो जीवः किम् इहगतः एतद्भवस्थित एव नैरयिकायुष्कं प्रतिसंवेदयति ? अथवा 'उवजमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेएई' किम् नारके उपपधमानः सन् नैरयिकायुष्कं प्रतिसंवेदयति ? अथवा 'उववन्ने नेरइयाउयं पडिसंवेएई' उपपन्नो भूत्वा नैरयिकायुष्कं प्रतिसंवेदयति ? भगवानाह-'गोयमा ! णो इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेएई' हे गौतम ! नो इहगतः एतद्भव स्थित एव नैरयिकयोग्यो जीवः कथमपि नैरयिकायुष्कं प्रतिसंवेदयति, अपितु 'उबवज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेई' नारके उपपद्यमान एव नैरयिकायुष्कं प्रतिसंवेदयति अथ च 'उचवन्ने वि नेरइयाउयं पडिसंवेएई' नारके उपपन्नो भूत्वाऽपि नैरयिकायुष्कं प्रतिसवेदयति, एवं जाव वेमाणिएम' एवं जाव वेमाणिएम' एवं नैरयिकायुष्कपडिस वेदेइ उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ. उववन्ने नेरइयाउयं पडिसंवेदेइ' हे भदन्त ! जो जीव नरकोंमें उत्पन्न होनेका योग्य होता है ऐसा वह जीव क्या इसी भवमें स्थित हुआ नैरयिक आयुष्क का वेदन करता है? या नरकों में उत्पन्न होते हुए ही वह नारक आयुष्क का वेदन करता है ? या नारकों में उत्पन्न होने के बाद ही नारकायुष्क का वेदन करता है ? इसके उत्तर में प्रभु उनले कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम! 'णो इहगए नेरड्याउय पडिसंवेदेई' वहीं पर उत्पन्न होते ही वह नारकायुष्क का संवेदन करने लगता है तथा 'उववन्ने वि नेरइयाउय पडिसंवेएइ' उत्पन्न होने के बाद भी वह नैरयिकायुष्क का संवेदन करने लगता है । 'एक जाव वेमाणिएस्तु' पडिसंवेदेइ, उववन्ने नेरइयाउयं पडिसंवेदेड ?' शु मा सभा २डीने નારકાયુનુ વેદન કરે છે? અથવા શું એ જીવ નરકમાં ઉત્પન્ન થતાની સાથે જ નારકાયુનુ વેદન કરે છે? અથવા શું તે નરકમાં ઉત્પન્ન થઈ ગયા બાદજ નારકાયુનું પિન્ન કરે છે?
तेन वाम भापता महापा२ प्रभु ४ छ ४- 'गोयमा! गौतम! 'णो इहगए नेरइयाउयं पडिसंवेदे' नाम G4-न थवा यय ७१ २ भमा रहेत. हाय त्यारे ना२४युनु वेहन ४२ते। नथी, ५२न्तु 'उववज्जमाणे नेरइयाउयं पडिसेवंदेड ना२मा उत्पन्न Adir ना२युनुं स वहन ४२३ all छ, तथा
उववन्ने वि नेरइयाउयं पडिसंवेदे' त्या 4-1 थया ा प ना२युर्नु सवान ४२१॥ वागे छ. ' एवं जाव वेमाणिएस, मायुना सध विषनु ने