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________________ - अमेयचन्द्रिका टीका श.७ उ.३ स. ५ वेदनानिर्जरास्वरूपनिरूपणम् ४६७ मिन्नतया यावत्-या वेदना, न सा निर्जरा, या निर्जरा न सा वेदना वा वक्तुं शक्यते । गौतमः पृच्छति-'नेरइयाणं भंते ! जा वेयणा मा निज्जरा, जा निज्जरा सा वेयणा ?' हे भदन्त । नैरयिकाणां या वेदना भवति सा एवं 'किं निर्जरा, किंवा या निर्जरा भवति सा एव तेषां वेदना व्यपदिश्यते ? भगवानाह-'गोयमा ! णो इणहे समढे ?' हे गौतम ! नायमर्थः ससर्थः नैरयिकाणां वेदना नीर्जरा न भवति । निर्जरा वा वेदना न भवति । गौतमः पृच्छति ‘से केणट्ठणं भते ! एवं बुच्चई-नेरझ्याणं जा वेयणा, न सा णिज्जरा क्रमशः कर्मरूपता और नो कर्मरूपता होनेके कारण इन दोनों में भिन्नता आजानेसे जो वेदना है वह निर्जरारूप नहीं है और जो निर्जरा है वह वेदनारूप नहीं है एसा मैंने कहा है । अब गौतम प्रभुले ऐसा पूछते हैं 'नेरइयाणं अंते ! जा बेयणा ला निज्जरा, जा निज्जरा सा वेयणा' हे भदन्त ! नारकजीयोंको जो वेदना होती है क्या वही निर्जरारूप होती है ? अथवा उनकी जो निर्जरा होती है, वहीं क्या वेदनारूप होती है ? इसके उत्तरमें प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो इणढे सम?' ऐसा अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् नारकजीवांकी वेदना निर्जरारूप नहीं होती है और न उनकी निर्जरा वेदनारूप ही होती है । अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि 'से केणढणं भंते ! एक वुचइ, नेरइया णं जा वेधणा, न ला. णिज्जरा, जा णिज्जरा न सा वेयणा' हे भदन्त ! ऐसा आप किस सा वैयणा' गौतम! ते २0 में से ४ह्यु छ । वदना भने निमा અનુક્રમે કર્મરૂપતા અને નેકરૂપતા હોવાને લીધે એ બન્નેમાં ભિનતા હોવાને કારણે જે વેદના છે તે નિર્જરારૂપ હોતી નથી, અને જે નિર્જરા છે તે વેદનારૂપ હોતી નથી - હવે ગૌતમ સ્વામી નારકની વેદનાના વિષયમાં મહાવીર પ્રભુને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન पूछे थे- 'नेइयाण भंते ! जा वेयणा सा निज्जरा, जा निज्जरा सा वेयणा?' ભદન્ત નારક જીવન જે વેદના હોય છે, તે શુ નિર્જરારૂપ હોય છે? અથવા તેમની જે નિર્જર હેય છે, તે શુ વેદનારૂપ હોય છે महावीर प्रभुने। उत्तर-- "गोयमा ! णो इणद्वे समटे गौतम ! मे नी શકતુ નથી હવે ગૌતમ સ્વામી તેનું કારણ જાણવાની જિજ્ઞાસાથી આ પ્રમાણે પ્રશ્ન पूछे छे- 'से केणगुणं भंते ! एवं बुच्चा, नेरइयाणं जो वेयणा, न सा निज्जरा, जा निजरा न सा वेयणा ?' म मा५ । ४२णे ४ा छ। नानी वना નિજારૂપ હોતી નથી અને નિર્જરા વેદનારૂપ હોતી નથી?
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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