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भगवती सूत्रे
यावत् - वीजानि वीजजीवस्पृष्टानि कस्मात् खलु भदन्त ! वनस्पतिकायिका आहरन्ति ? कस्माद परिणमयन्ति ? गौतम ! मूलानि मूलजीवरपृष्टानि पृथिवी जीवप्रतिवद्धानि तस्मात् आहरन्ति तस्मात् परिणमयन्ति एवं यावत्भंते ! मूला सूलजीव फुडा, जाव बीया वीयजीवफुडा, कम्हा णं भंते ! Treasाइया आहारेंति कुम्हा परिणार्मेति) हे भदन्त । यदि मूल मूलजीवसे स्पृष्ट व्याप्त हैं यावत् बीज बीजजीवसे व्याप्त हैं तो किस कारणसे हे भदन्त ! वनस्पतिकायिक किसरीति से आहारकर ते हैं और उस आहारको किस तरह से परिणमाते हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (मूला मूलजीवफुडा, पुढवीजीव पडिबद्धा तम्हा आहारेंति, लम्हा परिणामेति, कंद्रा कंदजीवफुडा मूलजीचपडिबद्धा, तम्हा आहारेंति, सम्हा परिणामेंति, एवं जाव बीया वीयजीवफुडा, फलजीवपडिचद्धा, तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति) मूल मूलजीवोंसे व्याप्त है और वे मूलजीव पृथिवी जीवके साथ प्रतिबद्ध जुडे हुए रहते हैं इसलिये वनस्पतिकायिक जीव आहार करते हैं और उस गृहीत आहारको वे परिणमते हैं | कंद्र कंदके जीवोंसे व्याप्त हैं और वे कंदके जीव सूलजीचोंके साथ प्रतिवद्ध रहते हैं । इसलिये वे आहार करते हैं । और उस गृहीत आहारको वे परिणमाते हैं । कंद कंदके जीवोंसे व्याप्त हैं और वे कंद के जीव सूलजीवोंके साथ प्रतिवद्ध रहते हैं । इसलिये वे आहार करते हैं और उस गृहीत आहारको परिणमाते है । इसी तरहसे यावत्बीज बीज जीवोंसे व्याप्त फुडा, जात्र वीया वीयजीव फुडा, कम्हा णं भंते! वणस्सइकाइया आहारेंति, कम्हा परिणामे ति) डे लहन्त ! ले भूज भूजल वोथी स्पृष्टव्याप्त होय छे, ( यावत्) जीन जीवोथा व्यास होतो વનસ્પતિકાયિક જીવા કવી રીતે આહાર ગ્રહણ કરે છે, અને તે આહારને કેવી રીતે परिभावे छे ? (गोयमा !) हे गौतम! मूला मूलजीवफुडा, पुढवीजीव पविद्धा, तम्हा आहारोंति, तम्हा परिणामेंति, एवं जाव बीया वीयजीव फुडा, फलजीवपडिवद्धा, तम्हा आहारे ति, तम्हा परिणामें ति) भूणभूणपोथी બ્યાસ હાય છે, અને તે મૂળવા પૃથ્વીવાની સાથે સંબદ્ધ-સ લગ્ન હેય છે, તેથી વનસ્પતિકાયિક જીવે। આહાર કરે છે, અને ગ્રહણ કરેલા આહારનુ પરિણમન કરે છે કન્દ કેન્દ્રના જીવેાથી વ્યાસ હાય છે, અને તે કૅન્દ્રજીવા સાથે સંલગ્ન રહે છે, તેથી તએ આહાર કરે છે અને તે ગૃહીત આહારનુ પરિણમન કરે છે. એજ પ્રમાણે બીજ
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