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प्रमेवचन्द्रिका टीका श.७ उ.२ सू.२ प्रत्याख्यानस्वरूपनिरूपणम् ३६५ मूलगुणप्रत्याव्यानं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! विविध प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-सर्व मूलगुणप्रत्याख्यानं च, देशमूलगुणप्रत्याख्यान च, सर्वमूल गुण प्रत्याख्यानं खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! पञ्चविध प्रज्ञप्तम्
प्रत्याख्यानविशेषवक्तवता'काविहे ण भंते' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-( कइविहे णें भंते ! पचक्खाणे पण्णत्ते) हे भदन्त ! प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (दुविहे पञ्चक्खाणे पण्णत्ते) प्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है (तं जहा) वे दो प्रकार ऐसे हैं-(मूलगुणपचक्खाणे य, उत्तरगुण पचक्खाणे य) एक मूलगुणप्रत्याख्यान और दूसरा उत्तरगुणप्रत्याख्यान (मल गुणपचक्खाणे णें भंते ! कइविहे पण्णत्ते) हे भदन्त ! मूलगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (दुविहे पण्णत्ते) मूलगुणप्रत्याख्यान दो प्रकार का कहा गया है (तं जहा) वे उसके दो प्रकार ऐसे हैं (सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणे य, देसमूलगुणपञ्चक्खाणे य) एक सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान, दूसरा देशमूलगुणप्रत्याख्यान (सव्वमूलगुणपच्चक्खाणे णं भते ! कइविहे पण्णत्ते) हे भदन्त ! सर्वमूल गुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (पंचविहे पण्णत्ते) सर्वमूलगुण प्रत्या
प्रत्याभ्यान विशेषतव्यता'कइविहे गं भंते ! त्या:
सूत्रार्थ-(काविहे गं भंते ! पच्चखाणे पण्णत्ते ?) 3 महन्त ! प्रत्याभ्यानन! ४८९४२ : छ ? (गोयमा ! दुविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते ) हे गौतम ! अत्माभ्यानना मे ४.२ ४था छ-(तं जहा) ते मे प्रारी मा प्रभारी छ
(मूलगुणपच्चक्खाणे य, उत्तरगुणपच्चक्खाणे य) (१) भूत अत्याध्यान भने उत्तर प्रत्याभ्यान. (मूलगुण पच्चक्खाणे णं भंते! कइ विहे पण्णत्ते) 3 महन्त ! भूत्र प्रत्याभ्यानना 21 २ ४ा छ ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते तं जहा) 3 गौतम! भूदगुए प्रत्याभ्यानना में प्रा छे. ते मे २ मा प्रभा छ- (सवमलगुणपच्चक्खाणे य, देसमूलगुणपच्चक्खाणे य) (૧) સર્વમૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાન, (૨) દેશમૂલગુણ પ્રત્યાખ્યાન
(सवमूलगुणपच्चकखाणे णं भंते ! कइ विहे पणत्ते ?) हे महन्त ! सब भूजय प्रत्याभ्यानना था र छ? (गोयमा) है गौतम !