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भगवती सूत्रे.
निरिन्धनतया अकर्मणो गतिः प्रज्ञाप्यते ? गौतम ! तद्यथा नाम धूमस्य इन्धनविप्रमुक्तस्य ऊर्ध्व विस्रसया निर्व्याघातेन गतिः प्रवर्तते, एवं खल गौतम ! निरिन्धनतया अकर्मणोगतिः प्रज्ञाप्यते । कथं खलु भदन्त ! पूर्व प्रयोगेण कर्मणो गतिः प्रज्ञप्यते ? एवं खलु गौतम ! तद्यथा नाम काण्डस्य ( कहं णं भंते! निरिंधणयाए अकम्मस्स गई ? ) हे भदन्त ? कर्मरूप ईन्धनसे रहित होजानेसे अकर्मवाले जीवकी गति किस तरहसे कही गई है ? (गोगमा) हे गौतम ! ( से जहानामए धूमस्स इंधणविप्पमुस्स उड्ढ बीससाए निव्वाघाएणं गई पवत्तइ, एवं खलु गोयमा ! ) जैसे जलती हुइ अग्नि और ईंधन के संयोग सेजन्य धूमकी गति विना किसी रुकावटके स्वभावतः ऊपरकी और होती है इसी प्रकार से कर्मरूप ईंधन से मुक्त-रहित हुए जीवकी भी गति स्वभावसे उर्ध्व होती है । (कहं णं भंते ! पुत्रप्पओगेणं अकम्मरस गई पण्णा) हे भदन्त ! पूर्वप्रयोगसे, कर्मरहित जीवकी गति किस प्रकार से कही गई है ? (गोयमा ! से जहानामए कंडस्स कोदंड विष्पमुस्स लक्खाभिसुही निव्वाघाएणं गई पवत्तई) हे गौतम ! जिस प्रकार धनुषसे छूटे हुए बाणकी गति विना किसी रुकावटके अपने लक्ष्य की ओर स्वभावतः होती है ( एव खलु गोयमा ! पुब्वप्पओगेणं अक्रम्मस्स गई पण्णाय) इसी तरहसे हे गौतम ! पूर्वप्रयोगसे न्वार्थी दुर्भरहित मनेसा लवनी चगु भेवी गति थाय छे. (कहं णं भंते ! निरिणयाए अकम्पस्स गई ? ) डे अन्त । ३५ ४न्धनथी रहित थ भवाथी गर्भबाणा कवनी गति देवी उही छे ? (गोयमा !) हे गौतम! ( से जहानामए are strugate उडूढं बीससाए निव्वाघाए णं गई पत्रत्त, एवं खलु (गोयमा !) हे गौतम! अश्वलित अग्नि भने ४धन (साईडी) ना सयोगथी येहा થયેલા ધુમાડાની ગતિ કાઇ પણ પ્રકારની રુકાવટ ન હેાય તે સ્વાભાવિક રીતેજ ઉપરની દિશામાં હોય છે, એ જ પ્રમાણે કર્મારૂપ ઇંધનથી મુકત (રહિત) થયેલા જીવની ગતિ स्वभावि४ रीते ? उर्ध्वं हाय है ( कहं णं भंते! पुण्त्रपओगेणं अम्मस्स गई पण्णायइ) हे लहन्त। यूव प्रयोगधी उर्भरहित लवनी गति देवी उही छे ? (गोयमा ! ) हे गौतम (से जहा नामए कंडस्स कोदंडविप्पमुकस्स लक्खाभिमुही निव्वाघाणं गई पत्त) भ धनुषभाथी छूटेला मागुनी गति अधयायु प्राश्नी रुावट न होय तो वालावि रीतेन पोताना लक्ष्यनी तरश्नी होय छे, (एवं खलु गोयमा !