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भगवतीसूत्रे २८० लक्खाभिमुही, निवाघाएणं गई पवत्तइ, एवं खल्ल गोयमा ! पुवप्पओगेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ, एवं खल गोयमा ! नीसंगयाए, निरंगणयाए, जाव पुचप्पओगेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ ॥सू०६॥ ___छाया-अस्ति खलु भदन्त ! अकर्मण गतिः प्रज्ञाप्यते ? हन्त ! अस्ति । गौतम ! अकर्मणो गतिः प्रज्ञाप्यते । कथं खलु भदन्त ! अकर्मणो गतिः प्रज्ञाप्यते ? गौतम ! निस्सङ्गतया, नीरागतया, गतिपरिणामेन, वन्धनच्छेदनतया, निरिन्धनतया, पूर्वप्रयोगेण अकर्मणो गतिः प्रज्ञाप्यते । कथं खलु
अकर्म जीवगति वक्तव्यता'अत्थि णं भंते' इत्यादि ।
सूत्रार्थ- (अत्थि णं अंते ! अकस्मस्स गई पण्णायइ) हे भदन्त ! क्या कर्मरहित जीवकी गति कही गई है ? (हंता, अत्थि गोयमा! अकम्सस्स गई पण्णायइ) हां, गौतम ! कर्मरहित जीवकी गति कही गई है । (कह णं भंते ! अकम्मस्स गई पण्णायह) हे भरन्त ! कौरहित जीवकी गति किस कारण से कही गई है ? (गोयमा) हे गौतम ! (निस्संगयाए, निरंगणयोए, गइपरिणामेणं, बंधणच्छेयणयाए, निरिधणयाए, पुचप्पओगेणं अकम्सस्स गईपण्णायइ) निस्संगहोनेके कारण, रागरहित होने के कारण, गतिस्वभाव के कारण, बंधन के छेद हो जाने के कारण कमन्धनसे रहित हो जानेके कारण
અકર્મ જીવ ગતિ વક્તવ્યતા'अत्थि णं भंते !' त्यादि
सूत्राथ:- (अत्थि णं भंते ! अकम्मस्स गई पण्णायइ ?) डे महन्त ! शु भहित अपनी गात ही छे ? (हंता, अस्थि गोयमा! अकम्मस्स गई पण्णायइ) 61, गौतम! ४भडित पनी गति ही छे (कई णं भंते ! अकम्मस्स गई पण्णायह?) हे गीतम! भडित पनी गति शारये हवामां मावी छ ? (गोयमा) मौतम! (निस्संगयाए, निरंगणयाए, गइपरिणामेणं, बंधणच्छेय. णयाए, निरिंधणयाए, पुचप्पओगेणं अकम्मस्स गई पण्णायइ) पाने કારણે (કર્મને સંગથી રહિત હોવાને કારણે રાગરહિત હોવાને કારણે, ગતિસ્વભાવને કારણે, બંધનનુ છેદન થઈ જવાને કારણે, કર્મરૂપ ઈન્જનથી રહિત થઈ જવાને કારણે