________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ६ उ. १०.५ केवलिनोऽनिंद्रियत्व निरूपणम् २३९ स्वीकार कर प्रभु से कहते हैं कि- 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति हे भदन्त ! आपके द्वारा उक्त यह सब विषय सर्वथा सत्य ही हैहै भदन्त ! सर्वथा सत्य ही है ॥ सू• ५॥
जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवतीसूत्र' की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके छट्ठे शतकका दशवां उद्देशक समाप्त ॥६-१०॥
'सेवं भंते ! सेवं भते ! त्ति' हे महन्त ! या विषयनुं खाये है પ્રતિપાદન કર્યું તે સત્યજ છે કે શ્વઇન્ત 1 આપનું કથન સ`થા સત્ય છે.' ! સૂ પ !
જૈનાચા. શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકૃત ‘ભગવતી’ સૂત્રની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના છઠ્ઠા શતકના सभी उद्देश सभाप्त. ॥१-१०॥