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। भगवतीको कोलट्ठियमायमवि जाव-उचदंसित्तए ? हे गौतम ! शक्नुयात् पारयेत् खलु, कश्चित तेषां घ्राणपुद्गलानां जम्बूद्वीपव्याप्तजनघ्राणप्रविष्टगन्धपुद्गलानाम् कोलास्थिकमात्रमपि यावत्-निष्पावादिमात्रमपि अभिनित्य बहिः निष्कास्य उपदर्शयितुं शक्नुयात् ? इति पूर्वेणान्वयः । गौतमः प्राह-'णो इणढे समडे' हे भदन्त ! नायमर्थः समर्थः, तेषां जम्बूदीपव्याप्तजनघ्राणप्रविष्टगन्धपुद्गलानामतिसूक्ष्मतया अमूर्तसदृशत्वात् पिण्डाकारतयोपदर्शयितुं न शक्यते, भगवानाह-'से तेणठणं जाव-उवदंसेत्तए' हे गौतम ! तत् तेनार्थेन यावदसित्तए' हे गौतम ! तो कोई ऐसा भी है जो उन घ्राण पुद्गलों को जम्बूद्वीपवर्ती जनों की प्राण इन्द्रिय में प्रविष्ट हुए गन्धपुद्गलों को कोलास्थिकमात्र भी- बेर की गुठली जितने भी बाहर निकाल करके थावत् दिखलाने के 'चक्किया' समर्थ है क्या? यहां यावत्पद से -'निप्पावमायमवि, कलममायमवि, माममायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायवि, लिक्खामायमवि अभिनिवदृत्ता' इम पाठ का संग्रह हुआ है। इस पर गौतम प्रभु से कहते है कि ‘णो इण समढे' हे भदन्त ऐसा अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो उन जम्बूद्वीपवर्तीजनों के घ्राणवर्ती गंधपुद्गलों को उनकी नाक में से वेर की गुठली आदि जितनी भी मात्रा में बाहर निकालकर दिखला सके कारण कि-वे जम्बूद्वीप व्याप्त जन घ्राणवर्ती गंध पुद्गल
अतिसूक्ष्म होने के कारण अमूर्त जैसे होते हैं-इसलिये पिण्डाकार रूपमें उन्हें दिखलाने की शक्ति किसी भी व्यक्ति में नहीं हो मकती है। इस पर प्रभु उनसे कहते है 'से तेणढणं जाव उवदंसेत्तए' उवदंसित्तए' गौतम ! मुदीपवती नानी शान्द्रियमा प्रवेशमiत पynaમાંથી, બેરના ઠળિયાથી લઈને લીખ પયતના પ્રમાણુ જેટલા ગંધયુગલેને બહાર કાઢીને બતાવવાને શું કઈપણ વ્યક્તિ શકિતમાન હોય છે? અહીં “યાવત’ પદથી
વાલ પ્રમાણુ વટાણા પ્રમાણ, અડદ પ્રમાણુ, મગ પ્રમાણે, જૂ પ્રમાણુ અને લીખ પ્રમાણને બહાર કાઢી આસપાસમા, મગ પ્રમાણ, જૂ પ્રમાણુ અને લીખ
'गौतम स्वामी हे छ- 'जो इणट्रे समंदर महन्त ! अध्या व्यcिt એવું કરી શકતી નથી જંબુંદીપવતી, લકેની ધ્રાણેન્દ્રિયમાં પ્રવેશેલાં ગબ્ધપુદગલો અતિ સૂક્ષ્મ હોવાને લીધે અમૂર્ત જેવાં જ હોય છે. તેથી ચિંડાકાર રૂપે તેમને બતાવવાની શકિત કેઈપણ વ્યકિતમાં સંભવી શકતી નથી. તેથી બેરના ઠળિયા જેટલાં ગધપુદ્ગલેને ५ 'महा२ ४ाढी मतावानु म । पशु व्यठित ४N Asता नथी. “से तेणटेणं