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भगवती सूत्रे
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( नायमर्थः समर्थः इति ) ' न जानाति न पश्यति' । उपरितनेषु (अन्तिमेषु ) चतुर्षु' 'जानाति पश्यति' । तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त ! || ३ ||
टीका - देवाधिकारात् तद्विशेषवक्तव्यतामाह - 'अविसुद्धले से णं' इत्यादि । 'अविसुद्धले से णं भंते ! देवे असमोहर णं अप्पाणणं अविमुद्धलेस्सं देवं देवि, वालादेव उपयुक्त अनुपयुक्त आत्मा द्वारा विशुद्धश्यावाले देवको, देवीको तथा इन दोनों में से किसी एकको जानता और देखता है ? (हंता जाण पास ) हां, गौतम ! विशुद्धलेइयावाला देव उपयुक्त अनुपयुक्त आत्मा द्वारा विशुद्धयावाले देवको, देवीको तथा इन दोनों से किसी एक को जानता और देखता है । ( एवं हेडिल्लपहि अहिं न जाणड़ न पास, उवरिल्लेहि जाणइ पासइ) इस तरह नीचे के आठ भागों द्वारा देव जानता नहीं है देखता नहीं है और ऊपर के चार भंगों द्वारा वह जानता है और देखता है | ( सेव भ ! सेव भंते ! ) हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह सर्वथा मत्य है है भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह सर्वथा सत्य है ।
टीकार्थ- देवका अधिकार चल रहा है इस कारण इस विषय में जो विशेष वक्तव्यता है उसे सूत्रकार प्रकट कर रहे हैं इसमें गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है कि 'अविसुद्धले से णं भंते ! देवे'
पासइ ? ) हे अहन्त ! विशुद्धश्यावाणी देव शुं उपयुक्त अनुपयुक्त आत्मा द्वारा વિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા દેવ અને દેવીને, અથવા અન્ય કેઈને જાણી શકે છે અને રૃખી શકે छे ? ( हंता, अत्थि ) डा, गौतम ! विशुद्ध सेश्यावाणी हेव उपयुक्त अनुपयुक्त આત્મા દ્વારા વિશુદ્ધ લેશ્યાવાળા દેવ અને દેવીને, અથવા તે બન્નેમાંના કેાઇ એકને लए|l शडे छे भने हेभी शडे छे ( एवं हेटिल्लएहिं अहिं न जाणड न पास, उवरिल्लेहि चउहिं जाणइ पासड) मा ते पडेला भाई लोगो ( विटुल्यो ) द्वारा દેવ જાણતા નથી અને દેખતે નથી, પણ છેલ્લા ચાર ભંગા દ્વારા જાણે છે અને દેખે છે ( सेवं भंते । सेवं भंते ! त्ति ) लहन्त ! खाये ? अधु ते सत्य ४ छे. હૈ ભદન્ત ! આપે જે કહ્યું તે સંથા સત્ય છે.
ટીકાથ– દૈવને અધિકાર ચાલી રહ્યો છે, તે કારણે આ વિષયનું વિશેષ પ્રતિપાદન કરવાને માટે સૂત્રકાર નીચેના પ્રશ્નોત્તરા પ્રકટ કરે છે— गौतम स्वाभी भहावीर प्रभुने मेवा अन पूछे छे ! अविमुद्धले सेणं भंते !
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