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________________ मगवतीपत्रे समजलो वर्तते ? तथा किम् लवणसमुद्रः क्षुब्धजल: वेलावशात् क्षुब्धं चलितं जलं यस्य स तथाविधः ? वेला च महापातालकलशगतवायुक्षोभादागच्छति, अथवा अक्षुब्धजलः, न क्षुब्धं जलं यस्य सः तथाविधो वर्तते ? भगवानाह 'गोयमा ! लवणे णं समुद्दे उसिओदए, णो पत्थडोदए' हे गौतम ! लवणः समुद्रः खलु उच्छ्रितोदकः वर्तते नो प्रस्तृतोदकः समजलः इत्यर्थः, एच 'खभियजळे, णो अखभियजले' स क्षुधजलो नो अक्षुब्धजल:, 'एत्तो आदत्तं जहा जीवाभिगमे जाव' इतः आरब्धम् लवणसमुद्रविषयकं वक्तव्यत्वम् , यथा जीवाभिगमसूत्रे तृतीयप्रतिपत्तौ प्रतिपादितम् तथापि विज्ञेयम् यावत् . समजलवाला है क्या? अथवा वेलावशसे क्षुब्ध-चलित है जल जिसका ऐसा है क्या ? वेला महापाताल कलशमें रही हुई वायुके क्षोभसे आती है । अथवा अक्षुब्ध जलवाला जिसका जल क्षुब्ध न हो एसा है क्या? इनके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि- 'गोयमा' हे गौतम ! 'लवणेणं समुद्दे ' लवणसमुद्र उच्छूितोदकवाला है- क्यों कि इसके पानीका उछाल कुछ अधिक १६००० योजन तक होता है । 'ना. पत्थडोदए' अतः यह समजवाला नही है । तथा इसी कारणसे यह 'खुभियजले, णो अखुभियजले' क्षुब्ध - चञ्चल जलवाला है, अक्षुब्ध जलवाला नही है । 'एत्तो' इस सूत्रसे 'आदत्तं' लवणसमुद्र विषयकवक्तव्य प्रारंभ हुआ है 'जह जीवाभिगमे जाव' जीवाभिगमसूत्रमें तृतीय प्रतिपत्तिमें, सो जैसा वहां पर कहा गया है- उसी तरहसे यहां पर भी जानना चाहिये. यहां 'यावत्' पदसे जीवाभिगम सूत्रोक्त ન હોય એવી–સમજળ સપાટીવાળ) છે? અથવા શું તે વેલા (ભરતી) ને કારણે ક્ષુબ્ધ (ચલિત) જળવાળે છે? (મહાપાતાલ કલશમાં રહેલા વાયુના લોભથી લવણસમુદ્રમાં ભરતી આવે છે અથવા શું તે અક્ષુબ્ધ જળવાળો છે? તેને જવાબ આપતા મહાવીર अभु ४ छ ? "गोयमा" ॐ गौतम ! लवणेणं समहे" समुद्र २७ता६४ઉછળતાં પાણીવાળે છે, કારણકે તેનું પાણી ૧૬૦૦૦ એજન કરતા પણ કંઇક વધુ मत२ सुधा जे छ, “नोपत्थडोदए" हो त सभ अपाटीवाणी नथा, "खुभियजले, णो अखुभियजले" ते क्षुण्य () पाणी छे, अक्षुण्य (स्थि२) जवाण नथी. "एत्तो" भा सत्रया "आदत्त" समुदनी ५४०यता प्रार था छ, जहा "जीवाभिगमे जा" निगम सभा त्री प्रतिपत्तिमा २ वर्ष કરવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણે, અહીં પણ લવણસમુદ્રનું વર્ણન સમજવું. અહીં
SR No.009315
Book TitleBhagwati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages880
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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