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भगवतीसूत्रे ___टीका-सप्तपोद्देशकान्ते भरतक्षेत्रस्य स्वरूपं निरूपितम्, अथ अष्टमोद्देशके पृथिवीनां स्वरूपं निरूपयितुमाह-कइ णं भंते' इत्यादि । 'कइणं भते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कति-कियत्यः खलु पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'गोयमा ! अट्ठ पुढवीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! अष्ट पृथिव्यः प्रज्ञप्ताः, ताः एव प्रदर्शयति-तं जहा-रयणप्पभा, जाव-ईसि पब्भारा' तघथा-रत्नप्रभा, यावत्-ईषत्पारभारा सिद्धशिला, यावत्करणात्-शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कमभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तम. प्रमा' इति संग्राह्यम्' गौतमः पृच्छति-'अस्थि णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढचीए अहे गेहाइवा, (तमुकाए कप्पपणए) इत्यादि तमस्कायमें और सौधर्मादि पांच कल्पोंमें, अग्नि और पृथिवीकाय कहना चाहिये अर्थात् इनके संबंध प्रश्न करना चाहिये । पृथिवीयोंमें अग्निके संबंधमें प्रश्न करना चाहिए। पाँच कल्पोंके ऊपर रहे हुए स्थानों में तथा कृष्णराजीमें तेजस्काय
और वनस्पतिकायके संबंधमें प्रश्न करना चाहिये। ___टीकार्थ-सप्तम उद्देशकके अन्तमें भरतक्षेत्रके स्वरूपका निरूपण किया गया है । अब इस अष्टम उद्देशकमें पृथिचिोंके स्वरूपको सूत्रकार निरूपण कर रहे हैं इसमें गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है कि 'कइ ण भंते ! पुढचीओ पण्णत्ताओ' हे भदन्त ! पृथिवियां कितनी कही गई हैं इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि 'गोयमा' हे गौतम 'अट्ट पुढवीओ पण्णताओ' पृथिवीयां आठ कही गई हैं 'तंजहा' अब उन्हींको दिखाने के लिये प्रभु कहते हैं कि 'रयणप्पभाजाव ईसीप्रभार ४ सभा :गाहा ॥ (तमकाए, कप्पपण) याहि तभ३४१५ भने सोधभः આદિ પાચ કામ અગ્નિકાય અને પૃથ્વીકાયના વિષયમાં પ્રશ્ન કરવો જોઈએ. પૃથ્વી એમાં અગ્નિકાયના વિષયમાં પ્રશ્ન કર જોઈએ. પાંચ કપ કરતાં ઉચેના સ્થાનમાં તથા કૃષ્ણરાજિઓમાં તેજસ્કાય અને વનસ્પતિકાયના વિષે પ્રશ્ન કર જોઈએ. ' ટીકાર્થ–સાતમાં ઉદ્દેશકના અતિમ સૂત્રમાં ભારત ક્ષેત્રના સ્વરૂપનું નિરૂપ કરવામાં આવ્યું. હવે આ આઠમાં ઉદ્દેશકમાં પૃથ્વીના સ્વરૂ૫નું સૂત્રકાર નિરૂપણ ४२ छे-गौतम स्वामी महावीर प्रभु। मेरो प्रश्न पूछे छे ४-कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ' 3 महन्त ! पृथ्वीमा 2ी ही छ ? ते त्त२ भापता महावीर प्रभु ४९ -'गोयमा !! गौतम ! 'अट्र पुढवीओ पण्णताओ' स्वामी' मा 3डी . 'तंजहा' तेमना नाम मा प्रभारी छ- रयणप्पभा जाव ईसीपम्भारा'