________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श.६ उ. ८ सू. १ पृथिवीस्वरूपनिरूपणम्
९९
मर्थः समर्थः । अस्ति खलु भेदन्त ! चन्द्राभा इति वा० ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः । एवं सनत्कुमार-माहेन्द्रयोः, नवरम् - देवः एकः प्रकरोति । एवं ब्रह्म लेाकेऽपि । एवम् ब्रह्मलोकस्योपरि सर्वत्र देवः प्रकरोति । प्रष्टव्यश्च बादरोऽकायः, वादरोऽग्निकायः, वादरो वनस्पतिकायः, अन्यत् तदेव, गाथा—'तमस्कायः कल्पपञ्चकेऽग्निः पृथिवी चाग्निः पृथिवीषु । आपस्तेजो वनस्पतिः कल्पोपरिमकृष्णराजीषु ॥ सू० १ || हे भदन्त ! वहा ग्रामसे लेकर सन्निवेश आदि हैं समट्टे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । दाभा वा ) हे भदन्त ! वहांपर चन्द्रकी प्रभा आदि हैं क्या ? (गोयसा) हे गौतम ! ( णो णट्टे समट्टे) यह अर्थ समर्थ नहीं हैं । ( एवं सणंकुमार माहिंदेसु नवरं देवो एगो पकरेड़) इसी तरहसे सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक में भी जानना चाहिये विशेषता यहां पर केवल इतनी ही है कि यहां पर एक देव ही करता है ( एवं बंभलोए वि एवं बंभलोगस्स उचरिं सव्वेहिं देवोपकरेड, पुच्छिव्वोय बायरे भाउकाए, चायरे अगणिकाए, बाघरे वणस्सइकाए, अण्णं तं चेच) मी तरह से ब्रह्मलोक में भी जानना चाहिये । इसी तरहसे ब्रह्मलोक के ऊपर समस्त स्थलोंमें देव करता है । तथा समस्त जगह बादर अपूकाय, चादर अग्निकाय और वादर वनस्पतिकायके संबंध में प्रश्न करना चाहिये । बाकी सब पूर्वकी तरहसे ही है । गाहा - गाथा वा० ?) हे महन्त ! त्या गाभथी धने सन्निवेश यहि जरा ? (गोइणट्टे समट्ठे) हे गौतम! त्या गाभ माहिनो सहभाव नथी (अत्थिणं भंते ! चंदाभाड वा० ? ) हे महन्त ! शुं त्या यन्द्र, सूर्य साहिनी प्रभा से भरी ? ( णो इणट्टे समट्ठे ) हे गौतम! त्या यन्द्राहिनी अला सलवी शक्ती नथी. ( एवं सणकुमार माहिंदेसुणवरं देवो एगो पकरेड़) मे ४ प्रमाणे सनत्कुमार ने माहेन्द्र देवसीउना વિષયમાં પણ સમજવું વિશેષતા કેવળ એટલીજ છે કે તેમા સસ્વેદન આદિ એક द्वेप ०४ ४रे छे. (एव वंभलोए वि, एवं वंभलोगस्स उवरिं सव्वेहिं देवो पकरेड़, पुच्छियत्रो वारे आउकाए, वायरे अगणिकाए, वायरे वणस्सइकाए, अण्णं तंत्र ) ०४ प्रमाणे उपना विषयमा पशु समन्न्वु मे अमारो બ્રહ્મલાકથી ઉપરના સમસ્ત કામાસ'સ્વેદન આદિ કેવળ દેવ જ કરે છે એમ સમજવું તથા સમસ્ત જગ્યાએ ખાદર અકાય, માદર અગ્નિકાય અને માદર વનસ્પતિકાયના સમ ધમાં પ્રશ્ન પૂછવા જોઇએ બાકીનુ સમસ્ત કથન પહેલાના કથન
क्या ? (णो इट्टे (अस्थि णं संते !