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________________ १४८ भगवतीसूत्र कि सप्रदेशाः अप्रदेशाः १ गौतम ! समदेशा अपि, अप्रदेशा अपि, एवं यावत्वनस्पतिकायिकाः, शेषाः यथा नैरयिकास्तथा, यावत्-सिद्धाः । आहारकाणां जीव-केन्द्रियवर्जनिकभङ्गः । अनाहारकाणा जी केन्द्रियवर्जाः पइभङ्गा एवं भगिहित हैं और कोई एक नारक जीव प्रदेशरहित हैं अथवा-कितनेक नारक जीव प्रदेशसहित हैं और कितनेक नारक जीव प्रदेशरहित हैं। इसी तरह असुरकुमारों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिये। (पुढवीकाइया णं भंते ! किं सपएसा अपएला) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव क्या प्रदेशसहित हैं कि प्रदेशारहित हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (सपएसा वि अपएसा वि) पृथिवीकायिक जीव प्रदेशसहित भी हैं और प्रदेशरहित भी हैं । ( एवं जाव वणस्सइकाइया लेसा जहा नेरड्या तहा जाव सिद्धा ) इसी तरह से यावत् वनस्पतिकायिक तक के जीवों के विषय में जानना चाहिये । जिस तरह से नरयिक जीवों के विषय में कहा है, उसी तरह से सिद्धतक के बाकी के जीवों के विषय में जानना चाहिये। (आहारगाणं जीव-एगिदियवजो तियभंगो) जीव और एकेन्द्रियको छोड़कर आहारक जीवों के तीनभंग होते हैं । (अणाहारगाणं जीव-एगिदियवजा छभंगा एवं भाणियव्या-सपएसा वा કેટલાક નારક જ પ્રદેશ સહિત છે અને કંઈક નારક જીવ પ્રદેશરહિત છે. અથવા કેટલાક નારક છે પ્રદેશ હિત છે અને કેટલાક નારક છે પ્રદેશરહિત છે. એ જ પ્રમાણે અસુરકુમારથી લઈને સ્વનિતકુમાર પર્યનતના વિષયમાં સમજવું. (पुढविकाइया ण भंते ! कि सपएसा आरएसा) महन्त ! पृथियि છે શું પ્રદેશ સહિત છે કે પ્રદેશરહિત છે? (गोयमा !) गौतम! ( सपएसा वि अपएसा वि) पृथ्वीयि: । प्रदेशसहित पशु छ भने प्रदेशहित ५ छ. (एवं जाव वणस्खइकाइया सेसा जहा नेरइया तहा, जाव सिद्धा) से प्रभारी वनस्पतिय सुधाना વિષે સમજવું જે પ્રમાણે નારક એના વિષયમાં કહ્યું છે, એ જ પ્રમાણે સિદ્ધ પર્યન્તના બાકીના વિષયમાં પણ સમજવું. (आहारगाण' जीव-एगिंदियवज्जो तियभंगो) ०५ गने मेन्द्रिय सिवायना भाडा२४ याना By A1 (qिz६५) थाय छे. ( अणाहारगाण जीव-एगिदियवज्जा छन्भंगा एवं भाणियव्वा (१) सपएसा वा, (२) अपएसा था, -
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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