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का हो० ० ६ उ०४ सू०१ जीवस्य सप्रदेश प्रदेशनिरूपणम् १४७
गौतम | स्यात् समदेशः स्याद् अप्रदेशः । एवं यावत् - सिद्धः । जीवाः खलु भदन्त ! कालादेशेन किं समदेशाः, अप्रदेशाः ? गौतम ! नियमात् सप्रदेशाः, नैरयिकाः खलु भदन्त | कालादेशेन किं सप्रदेशाः, अमदेशाः ? गौतम ! सर्वेऽपि तावद् भवेयुः सप्रदेशाः, अथवा समदेशाश्च अप्रदेशश्व, अथवा सप्रदेशाश्व अप्रदेशाश्च, एवम् असुरकुमारा यात्रत - स्तनितकुमाराः । पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त !
प्रदेशरहित है ? (गोमा ) हे गौतम! ( सिय सपए से सिय अपए से ) नाकजीव कालकी अपेक्षासे कदाचित प्रदेशसहित है और कदाचित् प्रदेशरहित है ( एवं जाव सिद्धे) इसी तरह से यावत् सिद्ध भी कदा चित् प्रदेशसहित हैं और कदाचित् प्रदेशरहित हैं । ( जीवा णं भंते । कालादेसेणं किं सपएसा अपएसा) हे भदन्त ! समस्त जीव क्या काल की अपेक्षा से प्रदेश सहित हैं कि प्रदेशरहित हैं ? ( गोयमा ) हे गौतम | समस्त जीव काल की अपेक्षा से ( नियमा) नियम से ( सपएसा ) प्रदेशसहित हैं । (नेरइया णं भंते ! कालदेसेणं किं सपएसा अपएसा ) हे भदन्त ! समस्त नारक जीव काल की अपेक्षा क्या प्रदेशसहित हैं कि प्रदेशरहित हैं ? ( गोधमा ) हे गौतम! ( सच्चे वि ताव होज्जा सपएसा, अहवा सपएसा य अपएसे, अहवा-सपएसा य अप एसा य एवं असुरकुमारा जाव धणियकुमारा) समस्त नारक जीव भी काल की अपेक्षा प्रदेशसहित हैं । अथवा कितनेक नारक जीव प्रदेशस
( गोयमा 1 सिय सपए से सिय अपएसे ) हे गौतम ! नार अजनी अये ક્ષાએ કયારેક સપ્રદેશી છે અને કયારેક અપ્રદેશી છે.
( एवं जाव सिद्धे ) खेल प्रमाणे सिद्ध पर्यन्तना व त्यारे सप्र દેશી છે અને કયારેક અપ્રદેશી છે.
( जीवाण भंते! काला देसेण सएसा अपएसा ) डे लहन्त ! समस्त लुरे। કાળની અપેક્ષાએ સપ્રદેશી છે કે અપ્રદેશી છે ?
( गोयमा 1 ) हे गौतम! समस्त
वो अजनी अपेक्षाओ ( नियमा
सपएसे ) नियमश्री सप्रदेशी छे.
( नेरइया ण' भंते ! कालादेसेण किं सपएसा अपएसा ? ) हे लहन्त ! સમસ્ત નારક જીવા શું કાળની અપેક્ષાએ પ્રદેશસહિત છે કે પ્રદેશરહિત છે
( गोयमा 1 ) हे गौतम ! ( सव्वे वि ताव होज्जा सपएसा, अहवा सपन एसी य अपएसे, अत्रा - सपएसा य अपएसाय एवं असुरकुमारा जवि थणियकुमारी) समस्त नार४ को पशु अजनी अपेक्षा मे अहेशसहित छे. अथवा