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प्रमेयचन्द्रिका टी० श० ६ ० ३ सू० ५ कम स्थितिनिरूपणम् अथ सूक्ष्मविपयकवंधद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'णाणावरणिज्जणं भंते कम्म कि सुहुमे, बंबइ वायरे वंधइ ?' हे भदन्त ! ज्ञानावरणीयं कर्म किं सूक्ष्मः वध्नाति बादरो वा वनाति ? ' णोसुहुम-गोवायरे बंधइ ? ' नोमूक्ष्म-नोवादरो वा किं वध्नाति ? भगवानाह-' गोयमा ! सुहुमे बंधइ ' हे गौतम ! सूक्ष्मो वध्नाति, 'वायरे भयणाए ' वादरो भजनया कदाचिद् वनाति, कदाचिन्न वघ्नानि, वीतरागवादराणां ज्ञानावरंणावन्धकत्वात् , सरागवादराणां च तद्वन्धहारक जीव-समुद्धातगत केवली और विग्रहगति वाले जीव-आयुकर्म का बंध नहीं करते हैं। क्यों कि इस अवस्था में वे आयु कर्म के अबन्धक माने गये हैं।
अब सूक्ष्मविषयकवंधद्वारका आश्रित करके गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते हैं.कि-(णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्म किं सुहुमे बंधइ, बायरे वंधह ?) हे भदन्त ! सूक्ष्मद्वार की अपेक्षा विचार करनेपर कौनसा जीव ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? क्या जो सूक्ष्मनामकर्म के उदयवाला जीव है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? या जो बादर नाम कर्म के उदयवाला जीव है, वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता हैं ? (णो सुहुम णो बायरे वंधइ ) जो जीव न सुक्ष्म है और न बादर है वह ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं (गोयमा) हे गौतम ! (सुहमे बंधह) सूक्ष्म जीव ज्ञानावरपीय कर्म का बंध करता है (बायरे भयणाए ) बादर जीव भजना से हारए णो धइ ) मनाडा२४ 4 मेटले , समुद्धात पक्षी मने वियर्ड ગતિવાળા જી અ યુકમને બંધ કરતા નથી, કારણ કે આ અવસ્થામાં તેમને આયુકર્મના અન્ય માનવામાં આવેલા છે.
હવે ગૌતમ સ્વામી સૂક્ષમદ્વારને અનુલક્ષીને મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન पूछे छे है ( णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्म किं सुटुमे बधइ १) महन्त ! સૂમકારની અપેક્ષાએ વિચાર કરતા કો જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે? शुं सूक्ष्मनाममना मध्यवाणी 4 ज्ञानापरीय ४ मांध छे १ , “ वायरे बंधइ १) माह२ (स्थू) नामभना यवाणो ७१ ज्ञानावरणीय प्रभाधे छ । अथवा (णो सुहम णो बायरे बंधइ ) २ 94 सूक्ष्म अनेन मार હેય છે, તેઓ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાળે છે?
त्तर-(गोयमा !) गौतम ! (सुहुमे बंधइ) सूक्ष्म ७५ शानापणीय भन viध ४२ छ, (बायरे भयणाए ) मा४२ (स्थू) ते मना
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