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अगवती णोअपज्जत्तए न बंधइ' नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तकः सिद्धो न बध्नात्येव, एवंआउगवज्जाओ सत्त वि ' एवं ज्ञानावरणवदेव आयुष्कर्जाः सप्तापि कर्म प्रक्रतयो वेदितव्याः। तथा च आयुष्य वर्जितानि दर्शनावरणादिकर्माण्यपि पर्याप्तकः कदाचिद् बध्नाति, कदाचिन्न बध्नाति, अपर्याप्त कस्तु वध्नात्येव, नोपर्याप्तक-नो अपर्यासकः सिद्धस्तु न बध्नात्येवेति भावः । 'आउगं हेछिल्ला दो भयणाए' आयुष्कं कर्म अधस्तनौ आधौ द्वौ पर्याप्तकाऽपर्याप्तको भजनयामायुषो बन्धकाले (भजनया) यहां ऐसा कहा है। (अपज्जत्तए बंधइ ) तथा जो जीव अपर्याप्तक है-पर्याप्तक नहीं है-वह तो ज्ञानावरणीय कर्म का वध करता ही है। ( णोपज्जत्तय-णोअपज्जत्तए न बंधह ) परन्तु जो जीव न पर्याप्तक की कोटि में है और न अपर्यातक की ही कोटि में है-ऐसा वह सिद्ध जीव ज्ञानावरणीय कर्म का धंध करता ही नहीं है (एवं आउगवज्जाओ सत्त घि) ज्ञानावरण की तरह ही आयुष्कर्ज सातकर्मप्रकृतियों को अर्थात् ज्ञानावरणीयको कह चुके है और आयुष्कका निषेध है, अतः ६ कर्मप्रकृतियों को जानना चाहिये-तथा च आयुष्क वर्जित दर्शनावणीय आदि कर्म भी पर्याप्तक जीव कदाचित् बांधता है। और कदाचित् नहीं बांधता है। परन्तु जो अपर्याप्तक होता है वह तो बांधता ही है। एवं जो न पर्याप्तक होता है और न अपर्याप्तक होता है अर्थात् जो सिद्ध जीव है, वह भी नहीं बांधता है। (आउगं हेहिल्ला दो भयणाए ) आयुकर्म के पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो जीव विकल्प से-भजना से-बांधते हैं अर्थात्-आयुकर्म के बंध ।
छ. “ अपज्जत्तए बधइ" तथा २ 04 मर्यात सय छ त aaslil१२णीय भनी म अवश्य ४२ छ. (णोपज्जत्तय णो अपज्जत्तए न बधइ) પણ જે જીવ પર્યાપ્તકની ટિમાં હોય છે, અને નોઅપર્યાપકની કટિમાં डाय छ, मेवे। सिद्ध 4 ज्ञानावरणीय भनी म ४२ ४ नयी (एवं आउगवज्जाओ सत्त वि) पर्यात हानी अपेक्षा मायु सिवायना सात કર્મબંધનું કથન જ્ઞાનાવરણીય કર્મના કથન પ્રમાણે જ સમજવું એટલે કે આયુકમ સિવાયના સાતે કર્મોનો બંધ પર્યાપક જીવ બાંધે છે પણ ખરો અને નથી પણ બાંધતે. અપર્યાપ્તક છત્ર તે તે આયુકર્મ સિવાયના સાતે કમેને બંધ અવશ્ય બાંધે જ છે. અને જે ન પર્યાપ્તક અને ન અપર્યાપ્તક હોય છે એટલે કે સિદ્ધ જીવ હોય છે તે આયુકર્મ સિવાયના સાતે કર્મોને म ४२तेनथी. (आउगं हेदिल्ला दो भयणाए ) ५0 मन अपर्यात જીવ આયુકર્મ વિકપે બાંધે છે-એટલે કે ક્યારેક બાંધે છે અને કયારેક