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________________ ९०४ भगवतीसरे न बध्नाति, सम्यमिथ्यादृष्टिस्तु आयुष्यं कर्म न बध्नाति, तद्वन्धाऽध्यवसायस्थानाभावात् । गौतमः पुनरष्टमं संझ्यादिवन्धद्वारमाश्रित्य पृच्छति-'णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं किं सन्नी बंधइ, असन्नी वंधइ ?' हे भदन्त ! ज्ञानावरणीयं खलु कर्म कि संझी वध्नाति ? असंज्ञी वा वध्नाति ? ' णोसन्नि-णोअसन्नी बंधह ? 'नोसंज्ञि-नोअसंझी वा वध्नाति ? भगवान् उत्तरयति- गोयमा ! सनी सिय बंधर, सिय णो बंधइ ' हे गौतम ! संज्ञी मनःपर्याप्तियुक्तः स्पात् कदाचिद् वध्नाति, स्यात् कदाचिन बध्नाति, अत्रीतरागश्चेत्तदा ज्ञानावरणं बध्नाति, वीतरागश्चेत्तदा है। तथा सम्यग्दृष्टि जीव जो है, वह आयुकर्म का बंध नहीं करता है ऐसा जो कहा गया है उसका कारण यह है कि उसके आयु के बंध के अध्यवसाय स्थान का अभाव रहता है। __ अब गौतम ओठवें संज्ञी आदि पन्धद्वारको लेकर प्रभुसे पूछते हैं कि (णाणावरणिज्ज भंते ! कम्मं किं सनी बंधइ, असन्नी बंधड ?) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या संज्ञी जीव बांधता है? या असंज्ञी जीव बांधता है ? अथवा (णो सन्नी, णो असन्नी बंधइ) जो जीच न संज्ञी है और न असंज्ञी है, वह बांधता है ? भगवान् इस प्रश्न का उत्तर देते हुए गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम! (सन्नी सिय बंधह, सिय णो वंधइ) संज्ञी जीव-मनः प्रर्याप्ति सहित जो जीव है वह कदाचित् ज्ञानावरणीय कर्म का बंध करता भी है, और कदाचित् नहीं भी करता है। यदि संज्ञी जीव अवीतराग है, तो ज्ञानावरणीय कर्म का वह बंध करता દૃષ્ટિ જીવ આયુકમને બંધ કરતો નથી તેનું કારણ એ છે કે તેના આયુના બંધના અધ્યવસાય સ્થાનને અભાવ રહે છે. હવે ગૌતમસ્વામી આઠમાં સંજ્ઞી આદિ બંધદ્વારને અનુલક્ષીને મહાવીર પ્રભુને એ प्रश्न पूछे छे , (णोणावरणिज्जं ण भंते ! कम्म कि सन्नी बधइ १) महन्त ! शु सशी 04 ज्ञाना१२४ीय ४ मांधे छ ? " असन्नी बधइ ?" असशी शानावरणीय भ' मा छ १ अथवा ( णो सन्नी णो असन्नी बधइ ?) જે જીવ ને સંજ્ઞી છે-એટલે કે સંજ્ઞી નથી, અને તે અસંી છે એટલે કે અસંસી નથી–એ જીવ શું તે કર્મને બંધ કરે છે? उत्तर-" गोयमा !" :गौतम ! ( सन्नी सिय बधइ, सिय णो बंधह) सशी 01 ( भनापयासि सहितन। ) ४या२४ ज्ञानावरणीय કર્મને બંધ કરે છે અને કયારેક કરતું નથી. જે સગી જીવ અવીતરાગ હોય તે તે જ્ઞાનાવરણીય કર્મને બંધ કરે છે, પણ જે તે વીતરાગ હાય
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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