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भगवतीसो भदन्त ! कर्म किं स्त्री बध्नाति, पुरुषो वध्नाति, नपुंसको वध्नाति पृच्छा ? गौतम ! स्त्री स्याद् बध्नाति, स्याद नो बध्नाति, एवं त्रयोऽपि भणितव्याः, नो स्त्रीनोपुरुषनोनपुंसको बध्नाति । ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म किं संयतो बध्नाति, असंयतो वध्नाति, संयताऽसंयतो वध्नाति, नोसंयतनोअसंयतनोहोता है, नोनपुंसक-नपुंसक नहीं होता है, वह जीव ज्ञानावरणीय कर्म बांधता भी है और नहीं भी बांधता है। (एवं आउगवजाओ सन्त कम्मप्पगडीओ) इसी प्रकार का कथन आयु कर्म को छोडकर बाकी के सातों कर्मों के विषय में भी जानना चाहिये । (अउगं णं भंते! सम्मं किं इत्थी बंधह, पुरिसा बंधह, नपुंमओ बंधापुच्छा) हे भदन्त ! आयुकर्म का बंध क्या ली करती है ? पुरुष करता है ? नपुंसक करता है ? इस प्रकार से पहिले के जैमा प्रश्न यहां पर भी करना चाहिये। (गोयमा! इत्थी लिय बंधइ, लिय को बंधड, एवं तिनि वि भाणियव्वा) हे गौतम! आयुकर्म का बंध स्त्री करती भी है और नहीं भी करती है। इसी प्रकार ले पुरुप और नपुंसक के विषय में भी ऐसा ही कयन सर लेना चाहिये । ( गोइत्थी, णोपुरिस, णो नपुंसओ न बन्यद) जो नोस्त्री है नोपुरुप है ओ नोनपुंसक है वह आयुकर्म का इन्ध नहीं करता है । ( णाणावरणिज्ज ण भन्ते । कम्म कि संजए बंधह, असंजए बंधइ, संजयानंजए बंधइ, णो संजय, નથી, અને નપુંસક હોય છે-નપુંસક હેતે નથી, તે જીવ જ્ઞાનાવરણીય ॐ ४ांधे छ पशु मरे। भने नथी पर मांधतो. (एवं आउगवन्जाओ सत्तकम्मप्पगडीओ) मायुधम सिवायना मानां सात ना विषयमा पy मा પ્રકારનું કથન જ સમજવું.
(आउग णं भंते ! कम्म कि इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसओ बंधइ, पुच्छा) महन्त ! मायुश्मन मध शुश्री ४२ छ? ५३५ ४३ छ ? નપુંસક કરે છે? આ પ્રમાણે પહેલાંની જેવાં જ પ્રશ્નો અહીં સમજવા.
(गोयमा ! इत्थी सिय बधइ, सिय को बधइ एवं तिन्नि वि भाणियबा) . હે ગૌતમ! આયુકમને બંધ સ્ત્રી કરે પણ છે અને નથી પણ કરતી. પુરૂષ भने नधुसना विषयमा ५ ४ ४थन यवु नये. (णाइत्थी, णा पुरिस, णोनपुसओ न घड) नो खी-श्रीन डाय । १, ५३५પુરૂષ ન હોય એ જીવ અને ને નપુંસક-નપુંસક ન હોય એ જીવ मायुम ना भंध ४२२ नथी. (णाणावरणिज्ज णं भंते ! कि संजए बंधइ, अस