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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०६ उ०३ सू०५ कर्मबन्धनिरूपणम ८७९ जोसुहमणोबायरे न बंधइ । णाणावरणिज्ज णं भंते ! कम्मं किं वरिम बंधइ, अचरिसे बंधइ ? गोयमा ! अ वि भयणाए ॥ सू०५॥
छाया-ज्ञानावरणीयं खलु भदन्त ! कर्म किं स्त्री बध्नाति, पुरुषो बध्नाति, नपुंसको बध्नाति ? नोस्त्रीनोपुरूषनोनपुंसको बध्नाति ? गौतम ! स्त्री अपिबध्नाति, पुरुषोऽपि बध्नाति नपुंसकोऽपि वध्नाति, नोस्त्रीनोपुरुषनोनपुंसकः स्याद् वध्नाति, स्याद् नो बध्नाति, एवम् आयुष्कवर्जाः सप्त कर्मप्रकृतयः। आयुष्कं खलु
कर्मयन्धक वक्तव्यता
‘णाणावरणिज्जं णं अंते !' इत्यादि । सूत्रार्थ-(णाणावरणिज्जं णं भंते ! कसं किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसओ बंधइ ?) हे भदन्त ! ज्ञानावरणीय कर्म क्या स्त्री बांधती है ? या पुरुष बांधता है ? या नपुंसक बांधता है ? कौल बांधता है ? अथवा-(णोइत्थी णापुरिस - जोनपुंसओ बंधा) स्त्री नहीं बांधती है ? पुरुष नहीं बांधता है ? नपुंसक नहीं बांधता है ? तो कौन बांधता है ? (गोयमा! हत्थी वि बंधा, पुरिसा वि बंधड, नघुमओ वि बंधइ) हे गौतम ! स्त्री भी ज्ञानावरणीय कर्म बांधती है। पुरुष भी ज्ञानावरणीय कर्म बांधता है । नपुंसक भी ज्ञानावरणीय कर्म यांधता है। (णो हत्थी णो पुरिस-णो नपुंसओ सिय बंधइ, सिय णो बंधइ) तथा जी जीच नोस्त्री होता है-स्त्री नहीं होता है, नोपुरुष होता है-पुरुष नहीं
કમબન્ધક વક્તવ્યતા" णाणावरणिज्जणं भंते ! " त्या
सूत्राथ-(णाणावरणिज णं भंते ! कम्मं किं इत्थी बंधइ, पुरिसो बंधइ, नपुंसओ बंधइ १) महन्त ! ज्ञानावरणीय शुसी माधछे १ है पुरुष मांधे छ ? है नधुस मांधे छ ? अथवा-(णोइत्थी, णोपुरिस, णोनपुगओ बंधइ ?) ज्ञाना१रणीय भशु स्त्री माधती नथी ? ५३ष माता नथी ? न(स: भारत नथी ? (गोयमा ! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि वंधइ, नपुंसओ वि बंधइ) गौतम। श्री ५ ज्ञानावरणीय ४ मांधे छ, ५३५ ५५५ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે. અને નપુંસક પણ જ્ઞાનાવરણીય કર્મ બાંધે છે. (णोइत्थी, णोपुरिस, णोनपुंसओ सिय वधइ, सिय णो बंधइ) तथा रे 01 'नो श्री हाय छ-सी हाती नथी, ना ५३५ । डाय छे-५३५ जातो