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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका २०५ उ०१ सू० ३ ऋतुविशेषादिस्वरूपनिरूपणम् ७३ नापि, पञ्चसंवत्सरात्मकं युगमधिकृत्यापि आलापका कल्पनीयः, तथा 'वास सपण वि' वर्षशतेनापि, वर्षशतमधिकृत्यापि उक्तालापक क्रमः स्वयं वेदितव्यः एवं वाससहस्सेण वि' वर्षसहस्रेगापि वर्षसहस्रमरिकृत्यापि, तथा वास-सय सहस्सेण वि' वर्षशतसहस्त्रेणापि, लक्षवर्षाण्यधिकृत्यापि, तथा 'पुगेण वि' पूर्वाङ्गेणापि, चतुरशीतिलक्षवषैः पूर्वाङ्गम् तेन पूर्वाङ्गेगापि एवं 'पूज्वेण वि' पूर्वणापि-चतुरशीतिलक्षपूर्वाङ्गैः पूर्वम् तेन पूर्वेणापि, अनेनैव क्रमेण अग्रेऽपि बोध्यम् । तथा 'तुडियंगेण वि' टिताङ्गेनापि एवं ' तुडियेण वि' त्रुटितेनापि, जम्बू द्वीपे मन्दराचलस्य दक्षिणोत्तरार्धे पूर्वपश्चिमा च पूर्वप्रदर्शितरीत्या आलापकाः स्वयमूहनीयाः, अन्ते तदुपसंहरनाह-' एवं पुव्वंगे, पुव्वे ' इत्यादि । एवमुक्तरीत्या पूर्वानम् , पूर्वम् , ' तुडिअंगे' त्रुटिताङ्गम् , ' तुडिए ' त्रुटितम् , ' अडतरह स्वयं रच लेना चाहिये। (एवं जुएण वि) पांच संवत्सरों का एक युग होता है-सो इसीप्रकार से इस युग को लेकर भी आलापक बना लेना चाहिये । तथा-(वाससएण वि) वर्षशत को भी अधिकृत करके उक्त आलापक का क्रम स्वयं जान लेना चाहिये । इसी तरह से (वास सहस्सेण वि) वर्ष सहस्र को भी लेकर के तथा (वाससयसहस्सेण वि) लाखवर्षों को भी लेकर के (पुवंगेण वि) चौरासी लाख वर्षरूप,(पुन्वेण वि) पूर्वाङ्ग को भी लेकर के-चौरासी लाख पूर्वाङ्गो से निष्पन्न हुए पूर्व को भी लेकर तथा (तुडियंगेण वि) त्रुटितांग को लेकर (तुडियेणवि) त्रुटित को लेकर, पूर्वप्रदर्शित रीति के अनुसार आलापक जम्बूद्वीप में मन्दराचलपर्वत के दक्षिणोत्तरार्ध में और पूर्वपश्चिमोत्तरार्ध में अपने आप समझना चाहिये । अन्त में उपसंहार करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि (एवं पुवंगे, पुव्वे ) इत्यादि-उक्तरीति के अनुसार पूर्वाङ्ग, पूर्व, (तुडियंगे) त्रुटितांग, (तुडिए) त्रुटित (अडडंगे) अटभक्षाय पण नये. (एवं जुएण वि) युगनी अपेक्षा ५ मेवा જ આલાપક બનાવી લેવો. (પાંચ સંવત્સરને એક યુગ બને છે). તથા (वाससएण वि, वाससहस्सेण वि, वाससयसहस्सेण वि, पुव्वेण वि) शत, સહસવર્ષ લાખવષ, પૂર્વગ અને પૂર્વની અપેક્ષાએ પણ એજ પ્રકારના આલાપકે બનાવી લેવા જોઈએ, (પૂર્વાગ ૮૪ ચોર્યાસી લાખ વર્ષનું બને છે, અને ૮૪ચોર્યાસી सामगार्नु पूर्व भने छ) तथा मे प्रभारी (तुडियंगेण वि) त्रुटितin, भने ( तुडियगेणवि,) त्रुटितने मनुयक्षीन 4 मेवा मादाय वा नये सात सूत्रन ५स २ ४२ता सूत्रधार ४ छ है ( एव पुव्व'गे, पुत्वे) 64शत शत प्रमाणे १ पूर्वाग, पूर्व (तुडियंगे, तुडिए) त्रुटितin, त्रुटित, भ १०
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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