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मयान्द्रका टी० सं० ६ उ० ३ ० ३ फर्म पुद्गलोपचयस्नापम् २४३ अपर्यवसितः, नो चैव खलु जीवानां कर्मोपचयः सादिकोऽपर्यवसितः। तत् केनार्थेन ? । गौतम ! ऐयोपथिवन्धकस्य कर्मोपचयः सादिकः सपर्यवसितः । भवसिद्धिकस्य कोपचयोऽनादिकः सपर्यवसितः, अभवसिद्धिकस्य कर्मोपचयः अनादिकोऽपर्यवसितः, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-अस्त्ये केषां जीवानां कि जिनका कर्योपचय अनादि अनन्त हैं (जो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए खाइए अपज्जवलिए) परन्तु ऐला कोइ भी जीव नहीं है कि जिसका कर्मोपचय सादि और अनन्त हो । (से केणटेणं) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण ले कहते हैं ? (गोयना) हे गौतम! (ईरिया वहियबंधयस्स कम्मोवचए साइए सपज्जवसिए) ऐपिथिकवन्धक के ११ वे १२ वें और १३ वें गुणस्थानवी जीव के कर्मोपचय सादि और सान्त होता है (अवसिद्धियरस कम्योपचए अणाइए सपज्जवसिए) भवसिद्धिक जीव का कर्मोपचय अनादि लान्त होता है। (अभवलिद्वियस्त कम्पोवचए अणाइए अपज्जसिए) अभवसिद्धिक जीव का कर्मोपचय अनादि अनन्त होता है। (से तेणडेणं गोयमा ! एवं वुचइ) इस कारण हे गौतम ! मैंने पूर्वोक्त रूप ले ऐसा कहा है कि ( अत्थेगइयाणं जीवाणं) कितनेक जीवों का (कम्मोवचए) कर्मोपचय (साइए. णो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए साहए अपज्जवलिए ) सादि सान्त होता है, कितनेक जीवों का कर्मोपचय अनादि सान्त होता है कितनेक जीवों का कर्मोपचय अनादि अनन्त होता है-परन्तु ऐसा कोई सा भी मनात डाय छ, (णो चेव ण जीवाण' कम्मोवचए साइए अपज्जवसिए) पy એ કઈ પણ જીવ નથી કે જેને કર્મોપચય સાદિ અને અનંત હાય. (से केणद्वेण०) Bard ! सा५ पारणे हा छ ?
(गोयमा!) गौतम ! (ईरियावहियघयस्स कम्मोवचए साइए सप. ज्जवसिए) यापथि: धनी-११ भां, मारमा भने तेरमा गुस्थानवता सपना पियय सामने सात सय छे. ( भवसिद्धियस्स कम्मोवचए अणाइए सपज्जवसिए) ससिद्धि न पन्यय -मन सान्त डाय छे. ( अभवसिद्धियल्स कम्मोवचए अणाइए अपज्जवसिए) मससिEि ON भी. पृथय मनाहि मनातलाय. छ. (से तेणठेण गोयमा! एवं वुच्चइ). गौतम ! ते १२ में मे थुछ है (अत्थेगइयाणं जीवाण) als
वान (कम्मोवचए) भपियय ( साइए० णो चेवण जीवाण कम्मोवचए साइए अपज्जवसिए) साहसान्त डाय छे, 321वाना ययय मनाहि સાન્ત હોય છે અને કેટલાક જીવને કર્મોપચય અનાદિ અનંત હોય છે. પરંતુ એક પણ એ જીવ નથી હોતે કે જેને કર્મોપચય સાદિ અનંત હોય,