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भगवतीसूत्रे वसितः, नो अनादिका सपर्ययसितः, नो अनादिकः अपर्यवसितः । यथा खलु भदन्त ! वस्त्रस्य पुद्गलोपचयः, सादिकः सपर्यवसितः १, नो सादिकोऽपर्यवसितार, नो अनादिकः सपर्यवसितः ३, नो अनादिका अपर्यवसितः४, तथा खलु जीवानां कर्मोपचयः पृच्छा ? गौतम ! अस्त्येकेपां जीवानां कर्मापचयः सादिका सपर्यवसितः, अस्त्येकेषाम् अनादिकः सपर्यवसिकः अस्त्येकेपास् अनादिकः णो साइए अपज्जवलिए, नो अणाइए सपजवसिए, णो अणाइए अपज्जवसिए) हे गौतम ! बला के जो पुद्गलोपचय होता है वह सादि सान्त है, सादि अनन्त नहीं है, न अनादि सान्त है और न वह अनादिअनन्त है। (जहाणं संते ! वत्थल पोग्गलोवचए लाहए सपज्जवलिए गोलाइए अपज्जवलिए, नो अणाइए सपज्जवसिए, णो अणाइए अपज्जवसिए, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा) हे भदन्त ! जिस प्रकार वस्त्र का पुद्गलापचय सादि सान्त है। सादि अनन्त नहीं, अनादि सान्त नहीं है और अनादि अनन्त भी नहीं है, उसी प्रकार क्या जीवों का कर्मोपचय भी सादि लान्त है लादि अनन्त नहीं है ? अनादि सोन्त नहीं है ?
और अनादि अनन्त भी नहीं है ? (गोयमा) हे गौतम ! (अत्थेगइयाण जीवाणं कम्लोबचए साइए सपज्जवसिए) कितनेक जीव ऐसे हैं कि जिनका कर्मोपचय सादि सोन्त है (अत्थेगइयाणं अणाइए लपज्जवसिए) कितनेक जीव ऐसे हैं कि जिनका कर्मोपचय अनादि सान्त है (अत्थेगहयाणं आणाइए अपज्जवसिए) तथा कितनेक जीव ऐसे हैं साइए अपज्जवसिए, णो अाइए सपज्जवसिए, णो अणाइए अपज्जवसिए) वखना પુલને જે ઉપચય થાય છે તે સાદિ સાન્ત હોય છે, સાદિ અનંત હોતો નથી मनाहि सान्त डात नथी मने मनाहि मानत ५ जात नथी. (जहाण भंते ! वत्थस्स पोग्गलोवचये साइए सपज्जवसिए, णो साइए अपज्जवसिए, णो अणाइए अपज्जवसिए, तहाण जीवाण कम्मोवचए पुच्छा ) 3 महन्त ! वी शत वखना પુતલેને ઉપચય સાદિ સાન્ત હોય છે, સાદિ અનંત હેતે નથી, અનાદિ સાન્ત હોતે નથી અને અનાદિ અનંત હોતે નથી, એજ પ્રમાણે શું જીનાં પુલને ઉપચય પણ સાદિ સાન્ત હોય છે? શું તે સાદિ અનન્ત, અનાદિ सान्त भर मनामनात जात नथी ? (गोयमा !) गौतम! (अत्यंग इयाणं जीवाण' कम्मोवचए साइए सपज्जवसिए) है गौतम ! - 01 सवा डाय छ । तमना पियय साल सान्त डाय छ, ( अत्थेगइयाण अणाइए सपज्जवसिए) मा वाना पियय म सान्त डाय छ, (अत्थेगइयाण अाइए अपज्जवसिए) मा छवाना ५यय मनाह