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________________ भगवतीसूत्रे जीवक्रमवक्तव्यता वस्त्रपुद्गलोपचयदृष्टान्तेन जीवकर्मपुद्गलोपचय प्रतिपादयितुमाह-वत्थस्स णं भंते' इत्यादि। मूलत्व त्थस्स णं भंते ! पोग्गलोवचये किं पयोगसा वीससा ? गोयमा! पओगसा वि, वीलला वि जहाणं भंते! वत्थस्स णं पोग्गलोबचए पओगसावि, वीससावि, तहा णं जीवाणं कम्मोवचए किं पयोगसा, वीसमा ? । गोयना! पयोगसा नो बीसला। से केण?णं ? । गोयमा ! जीवाणं तिविहे पओगे पण्णत्ते तं जहा--मणप्पओगे, बइप्पओगे, कायप्प ओगे। इच्चएणं, तिविहणं पओगेणं जीवाणं कम्मोवचये पयोगसा णो वीससा । एवं सव्वेसि पंचिदियाणं तिविहे पओगे भाणियवे पुढवीकाइयाणं एगविहेणं पओगेणं, एवं जाव-वणस्तइकाइयाणं । विगलिंदियाणं दुविहे पओगे पण्णते, तं जहा-वइप्पओगे, कायप्पओगे य । इच्चेएणं दुविहेणं पओगेणं कम्मोवचए पयोगसा, णो वीससा, । से तेणडेणं जाव-णो वीससा । एवं जस्स जो पओगो, जाव-वेसाणियाणं ॥ सू० २॥ भी व्यवहार की दृष्टि से अशुद्ध और अबुद्ध बना हुआ है। परन्तु जिस प्रकार मलिन वस्त्र साफ हो जाता है उसी प्रकार यह आत्मा भी अपने पुरुषार्थ के बलपर कर्मरूपी मैल को धोकर के अपने मूल रूप में आ सकता है। जैसे कि मलिन वस्त्र साफ करने की प्रक्रिया से अपने सूल रूप में आ जाता है । स्सू०१॥ પુરુષાર્થથી કર્મરૂપી મેલને જોઈ પેઈને આત્મા પણ તેના મૂળ શુદ્ધ સ્વરૂપમાં આવી શકે છે. જેમ મલિન વાને સાફ કરવાની પ્રક્રિયા દ્વારા મૂળ રૂપમાં લાવી શકાય છે, એવી જ રીતે આત્મા પણ શુદ્ધ થઈ શકે છે. એ સૂત્ર ૧
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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